कविता

पर्यावरण

वातानुकूलित कमरे में बैठे-बैठे
बोतलबंद पानी का घूँट भरकर
उसने कहा यार बोरियत हो रही है
चलो एक-एक सिगरेट जलाएँ
और थोड़ी गंभीरता से सोचें
कि पर्यावरण कैसे बचाएँ

पैदल जा सकने वाली जगह भी
हमें तो लंबी सी गाड़ी से जाना है
घर के खाने से ऊब सी होती है
आज बाहर से डिब्बाबंद मंगाना है
कविता लिखते-लिखते गला सूख गया
चलो कोई ठंडा पेय पी कर आएँ
और थोड़ी गंभीरता से सोचें
कि पर्यावरण कैसे बचाएँ

नित नए-नए उद्योग लगाकर
क्लोरो-फ्लोरो कार्बन पैदा करते हैं
धरती का सीना हो या ओज़ोन की परत
दोनों में हर रोज़ छेद करते हैं
इन सब के साथ थोड़ा सा
सामाजिक सरोकार भी दिखाएँ
और थोड़ी गंभीरता से सोचें
कि पर्यावरण कैसे बचाएँ

यूँ ही वातावरण को दूषित कर
आने वाली पीढ़ियों को बे-मौत न मारो
हे विश्व के महान पर्यावरणवादियो
पहले खुद सुधरो फिर औरों को सुधारो
बातों से कुछ नहीं होने वाला
बंद करो ये व्यर्थ की चर्चाएँ
और अपनी जीवनशैली बदलकर
आओ सब मिलकर पर्यावरण बचाएँ

आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]