ग़ज़ल : तेरे नाम एक खत लिख दूँ
आज अफ़साना ऐ मोहब्बत लिख दूँ,
सोचती हूँ तेरे नाम एक खत लिख दूँ।
जो लबों पर आकर ठहर गयी मेरे,
सोचती हूँ वो ही हकीकत लिख दूँ।
वफ़ा के सिवा कुछ नहीं मेरे पास,
आ तेरे नाम मैं ये वसीयत लिख दूँ।
तेरी मजबूरियों को समझा था मैंने,
क्यों नहीं हुई पूरी इबादत लिख दूँ।
बेवफ़ाई नहीं की हमने एक दूजे से,
क्यों अधूरी रह गयी चाहत लिख दूँ।
आज भी दिल में तेरा प्यार बसा है,
कैसे हुई थी दिल पर आहट लिख दूँ।
दुनिया वाले नहीं समझ सकते कभी,
आशिक़ों से क्यों है नफ़रत लिख दूँ।
चलती रहती है कलम सुलक्षणा की,
माँ सरस्वती की हुई इनायत लिख दूँ।
— डॉ सुलक्षणा अहलावत