राजनीति

वर्तमान में कृषि समस्याग्रस्त भारत बनाम विश्वव्यापार संगठन का अंकुश

कभी भारत ऋषि प्रधान देश के नाम से विख्यात रहा | उसके बाद का भारत कृषि प्रधान देश के रूप में विश्वविख्यात रहा और अब “वर्तमान का भारत कृषि प्रधान देश से  परावलम्बी होकर कुर्सी प्रधान देश  बनकर रह गया है |” कहना शायद अतिश्योक्ति नहीं होगी |

किसी को यकीन हो या न हो मगर, सच्चाई कुछ कड़वी जरूर है जिसे नकारा भी नहीं जा सकता | किसानों को तवाह और बर्बाद करने का षड्यंत्र आज कोई नया नहीं है । इतिहास गवाह है, मैक्वाले द्वारा  तत्कालीन ब्रिटिश संसद में पेश किए गये रिपोर्ट को आधार बनाकर किये गए षड्यंत्र का एक हिस्सा है । रिपोर्ट में भारतीय अर्थ व्यवस्था में कृषि को मूल आधार बताया गया था तथा कृषि कार्य में बैलों का मुख्य योगदान है और बैलों की उतपत्ति भारतीय गायों द्वारा सृष्टिजन्य प्राकृतिक व्यवस्था से हो जाने के तथ्य को प्रमुखता से उजागर किया गया था ।

अतः अर्थ व्यस्था को लूटने तथा बर्बाद करने के साथ देश को गुलाम बनाकर रखने के निमित्त नीतिगत फैसले के रूप में गौ-बध जरूरी समझा गया | और गौ माँस अपने सैनिकों के भोजन में सम्मिलित ही नहीं किया गया बल्कि गौ-वध के निमित्त कत्लखाने भी खोले जाने लगे । शायद, यह भी एक संयोग ही कहा जाएगा- जहाँ-जहाँ अंग्रेज सैनिकों की छावनियाँ रही वहाँ-वहाँ कत्लखाने भी खोले गए साथ ही उनके शारीरिक अबयवों जैसे चमड़ी, हड्डी, रक्त और चर्बियों का व्यापारीकरण कर बड़े-बड़े उद्योग भी खड़े किये गये यथा- टूथपेस्ट, जूते-चप्पल, लिपस्टिक आदि | इस प्रकार  भारतीयों के आर्थिक शोषण के निमित गो-हत्या को एक साधन मानकर योजनानुसार नीति बनाई गई । उसी आर्थिक कंगाली और लूट की योजना के तहत  गो-वध आज भी कानूनी जामा पहने हुए है ।

अब तो बेरोगारी और आर्थिक क्षति का भी हवाला उन देश भक्तों द्वारा दी जा रही है, जिन्होंने देश को सदियों गुलाम बनाकर आर्थिक शारीरिक और मानसिक शोषण करते-कराते रहे और उनके सहयोग में गुलाम बनकर मौन मूक समर्थन भी अंग्रेजों का करते रहे। वधशालाओं के सरकारी लाइसेंस के आड़ में खुद भी लिप्त होनेवाले लोग किसान की समस्याओं पर आंदोलन खड़ा करे ये तो जले पर नमक छिड़कने से अधिक और कुछ नहीं कहा जा सकता है।

इतना ही नहीं नब्बे के दशक में १९९४ ई० का साल समाप्त होते-होते देश की आर्थिक रूप से इतना कंगाल हो चुका था, या यूँ कहें कि सत्ता द्वारा विकास के नाम पर विदेशी कर्ज में से भी इतनी अधिक आर्थिक लूट की गयी कि देश की शासन व्यवस्था चलाने के लिए भी विदेशी कर्ज की नितान्त  आवश्यकता महसूस कि गयी जिसके फलस्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व० चन्द्रशेखर को देश के स्वर्ण भंडार से ४५ मीट्रिक टन सोना तक विदेशों में गिरवीं रखनी पड़ी |

इन्हीं मजबूरियों के तहत विश्व व्यापार संगठन के अवांछनीय शर्तों के साथ १४ दिसम्बर’ ९४ को तत्कालीन राजनैतिक सत्ता द्वारा किये गये समझौते के मातहत कृषि आधारित समझौते पर गौर किया जाय तो स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय कृषि उद्योग को तबाह करने के निमित्त ही नहीं बल्कि और भी अन्य समझौतों के षड्यंत्र में भारत बुरी तरह फंस चुका है | जिसका रहस्योद्घाटन स्व० राजीव दीक्षित द्वारा राज सत्ता के साथ आम जनता को जागरूक करने के निमित्त, समय-समय पर दिए गये अभिभाषणों से स्पष्ट हो जाता है | उपरोक्त समझौते के अंतर्गत हस्ताक्षर करनेवाले देश अपने किसानों को किसी प्रकार की आर्थिक सहायता से बंचित होंगे | यहाँ तक कि बाढ़-सुखाड  जैसी स्थिति में भी आवश्यक आर्थिक मदद नहीं कर पायेंगे | आर्थिक सहायता के निमित्त भी विश्व व्यापार संगठन के प्रतिनिधियों द्वारा निर्धारित राशि से अधिक तो कतई नहीं | इसी नीतियों के फलस्वरूप सब्सिडी (आर्थिक सहायता) घटाने के साथ समाप्त करने के समझौतों का दबाब के आगे भारत सरकार झुकने को मजबूर है | जिसके परिणाम स्वरूप सत्ता पर काबिज होने के निमित्त राजनैतिक दल झूठे वादे अपने घोषणा-पत्र में तो जरुर कर देते हैं और देश की जनता सत्ता पर काबिज कर भी देती है मगर, सत्ता पाने के बाद उपरोक्त समझौता आड़े आ जाता है और घोषणा-पत्र के वादे मात्र छलावा ही सिद्ध होता है |

उपरोक्त तथ्यों से परिचित तत्कालीन सत्ता समर्थक राजनैतिक दल वर्तमान में विपक्षी दलों द्वारा मुद्दा बनाकर देश को अस्थिर करने और सत्ता प्राप्ति का साधन मानकर आमलोगों को बरगलाये जाने का उपक्रम किया जाने से अधिक और कुछ भी नहीं | ऐसे आंदोलनों में मरती तो जनता है जिनके लाशों पर राजनैतिक रोटियाँ सेंकने का काम बखूबी राजनैतिक दलों द्वारा किया जा रहा है, कहना शायद अतिश्योक्ति नहीं होगी | जिसका एक मात्र मूल उद्देश्य सत्ता प्राप्ति और आर्थिक लूट द्वारा स्वयं को आर्थिक रूप से सम्पन्न करना ही कहा जा सकता है |

उपरोक्त षड्यंत्र में उदारीकरण के नाम पर विदेशी पूंजी निवेश से संचालित तथाकथित देशी इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया भी मूल तथ्यों से आम लोगों को अनभिज्ञ रखते हुए आर्थिक दोहन में संलग्न प्रतीत होती है | घटनाएँ तो जरुर प्रचारित और प्रसारित कर जनाक्रोश के आग में घी डालने का ही काम करती रही है मगर, घटना के नेपथ्य में राजनैतिक षड्यंत्र का पर्दाफास कतई करती नहीं प्रतीत होती है |

बेशक, कहने भर को लोग कहें हमने सहकारी बैंकों के तहत फसली ऋण की योजना लागू की मगर, इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि सहकारिता के नाम पर, पंचायत स्तर से लेकर बैंकों से ऋण प्राप्त करने तक व्याप्त भ्रष्टाचार,  खाद-बीज और कीटनाशको की खरीद तक कालाबाजारी द्वारा आर्थिक शोषण से दबा किसान आखिर ऋण अदायगी करे तो कैसे करे ?

और जब फसल तैयार हो तो बाजार के लूटेरे लागत मूल्य से भी कम मनमानी कीमत पर  खरीदने को तो तैयार दिखते हैं मगर, किसानों के श्रम और दर्द नहीं दिखते।

इस तरह किसान कमीशनखोरी और रिश्वतखोरी की रकम बैंकों को लौटाए तो लौटाए कहाँ से ? जबकि कमीशनखोरी के खेल का बोझ भी किसानों के कंधे पर ही पड़ता हैं।

एक तो क्षुब्ध अन्नदाता परेशानियों से आक्रोशित, तनावग्रस्त जीवन जीता है | और  उस आग में घी डालने का काम इस देश के सत्तालोलुप राजनैतिक दलों के नेतानुमा व्यक्तियो द्वारा मात्र सत्ता प्राप्त करने के खातिर झूठे वादों, आश्वासनों द्वारा भड़काकर, बरगलाकर अस्थिरता पैदा करने का काम बखूबी किया जा रहा है।

दूसरे शब्दों में कहें तो – कहा जा सकता है- “लाशों पर सत्ता की राजनैतिक रोटियाँ सेंकी जा रही है।” कभी गो-रक्षा के नाम पर, तो कभी समर्थन मूल्य के नाम पर। कभी सम्प्रदाय तो कभी नौकरी के नाम पर भीड़तंत्र द्वारा उपद्रव फैलाकर देश को अस्थिर करने तथा समृद्धि के बजाय आर्थिक क्षति पहुंचाने का एक मात्र उद्देश्य सत्ता में सहभागी बनकर मनमानी लूट करने के अलावा और कोई उद्देश्य नहीं दिखता।

एक तो करेला यूँ भी तीता उस पर नीम चढा | उपरोक्त परिस्थितियों में किसानों के आगे आत्महत्या के अलावे और विकल्प ही क्या बचता है ?  जो प्रत्यक्ष है।

 

 

स्नेही “श्याम”

५०२/से-१०ए

गुरुग्राम, हरियाणा

श्याम स्नेही

श्री श्याम "स्नेही" हिंदी के कई सम्मानों से विभुषित हो चुके हैं| हरियाणा हिंदी सेवी सम्मान और फणीश्वर नाथ रेणु सम्मान के अलावे और भी कई सम्मानों के अलावे देश के कई प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुति से प्रतिष्ठा अर्जित की है अध्यात्म, राष्ट्र प्रेम और वर्तमान राजनीतिक एवं सामाजिक परिस्थितियों पर इनकी पैनी नजर से लेख और कई कविताएँ प्रकाशित हो चुकी है | 502/से-10ए, गुरुग्राम, हरियाणा। 9990745436 ईमेल[email protected]