“रेत में मूरत गढ़ेगी कब तलक”
जिन्दगी आगे बढ़ेगी कब तलक
काठ की हाँडी चढ़ेगी कब तलक
लहर आयेगी बहा ले जायेगी सब
रेत में मूरत गढ़ेगी कब तलक
प्यार के सब रास्ते अवरुद्ध हैं
दोष अपने सर मढ़ेगी कब तलक
उस ओर गहरी खाई है चट्टान के
इस इबारत को पढ़ेगी कब तलक
खूबसूरत “रूप” पर सब हैं फिदा
जंग किस्मत की लड़ेगी कब तलक
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)