ग़ज़ल
धोखा धडी सदैव यहाँ नागवार है
व्यभिचार और घूस यही उस्तुवार* है |*स्थायी
भाषण यहाँ सूना जो’ भी’, सारे विशेष हैं
मन की कथा तमाम छुपा इश्तिहार है |
इंसान जो गुनाह किया शर्मसार है
अल्लाह कचहरी में’ ही’ इसकी बकार* है |* सुनवाई
सत्यम शिवम यही सदा’ सुन्दर, सुना यहाँ
देखा नहीं तुम्हे खुदा’, दिल बेकरार है |
ज़ोर और ज़ुल्म अब नहीं’ स्वीकार दोस्तों
जीना स्वतंत्र, सबका’ यही इख्तियार है |
इक बार बेवफा मुझे’ आज़ाद कर दे तू
ये अनकहा, इताब बढाते दरार है |
वह जो निरीह साधु वही तो शिकार है
बच जाते’ बारहा वही’ जो गुनहगार है |
कालीपद ‘प्रसाद’