याद उन दिनों की दिल से जाती ही नहीं,
वो मुस्कुराहट अब चेहरे पर आती ही नहीं।
कच्ची उम्र की वो मोहब्बत कितनी पाक थी,
ऐसी पाक मोहब्बत ज़माने में पाती ही नहीं।
स्कूल में आते जाते वक्त मुलाकात होती थी,
किसी बहाने से हर रोज हमारी बात होती थी।
एक साल तक चला सिलसिला मोहब्बत का,
हर रोज पाक मोहब्बत की बरसात होती थी।
अपने घरवालों की मैं खिलाफत कर ना सकी,
दे दे खुद खुदा तुझे ऐसी इबादत कर ना सकी।
जिम्मेदारी की बेड़ियों में जकड़ी गयी थी मैं,
अपने मुकद्दर की भी मैं शिकायत कर ना सकी।
सुलक्षणा ने दबी चिंगारी को फिर भड़का दिया,
सालों बाद तेरे नाम से दिल ये मेरा धड़का दिया।
आँखों के आगे आ गए वो ही लम्हें अचानक से,
दिलाकर याद तेरी दर्द दिल का और बढ़ा दिया।
— डॉ सुलक्षणा