ग़ज़ल
वृथा चेष्टा, मिलेगा गुण नहीं कोई अभाजन में
दया सरकार में गायब, कहाँ होगा महाजन में ?
कुतूहल प्यास चातक का, वही चाहत हो’ साजन में
सुई की नोक जैसी तीक्ष्ण आखें हो वरानन@ में |
भरोसा अब करे किस पर, समर्थक पर या’ नेता पर
सभी गुंडे मवाली लोस**, नेता जी के भाजन* में |
वफ़ा विश्वास दोनों देश का अब है कहाँ यारों
मुहब्बत सब हुई विध्वस्त, भारत के विभाजन में |
गले में हाथ डाले झूलती है जब बेफफा सजनी
कभी लगती विसानन# तो कभी फांसी है’ गर्दन में |
वफ़ा उम्मीद कैसे आज के इंसान से जानम
जहर जो आदमी में है,नहीं है वह, विसानन में |
@प्रेमी का सुन्दर चेहरा ,* कृपा पात्र ** चापलूस,
#सर्पिनी
कालीपद ‘प्रसाद’