अनुगीत छंद
दर्द पराए समझे अपने,वही कहाए कवि।
फिर-फिर जोड़े टूटे सपने,वही कहाए कवि।
जो भूलों को राह दिखाता,वही कहाए कवि।
शब्द लुटा भूखा रह जाता,वही कहाए कवि॥
किले हवाई दिन भर गढ़ता,वही कहाए कवि।
कागज दामन मैला करता,वही कहाए कवि।
अपराध कहीं रोक न पाए,वही कहाए कवि।
झूठा बस आक्रोश दिखाए,वही कहाए कवि।
नेताओं का जो गुणगान करे,वही कहाए कवि।
संसद में जो जलपान करे,वही कहाए कवि।
रहे मंच में जोकर जैसा,वही कहाए कवि।
शब्द न बोले इक बिन पैसा,वही कहाए कवि॥
पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’