कविता

अनुगीत छंद

 

दर्द पराए समझे अपने,वही कहाए कवि।
फिर-फिर जोड़े टूटे सपने,वही कहाए कवि।
जो भूलों को राह दिखाता,वही कहाए कवि।
शब्द लुटा भूखा रह जाता,वही कहाए कवि॥

किले हवाई दिन भर गढ़ता,वही कहाए कवि।
कागज दामन मैला करता,वही कहाए कवि।
अपराध कहीं रोक न पाए,वही कहाए कवि।
झूठा बस आक्रोश दिखाए,वही कहाए कवि।

नेताओं का जो गुणगान करे,वही कहाए कवि।
संसद में जो जलपान करे,वही कहाए कवि।
रहे मंच में जोकर जैसा,वही कहाए कवि।
शब्द न बोले इक बिन पैसा,वही कहाए कवि॥

पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’

पीयूष कुमार द्विवेदी 'पूतू'

स्नातकोत्तर (हिंदी साहित्य स्वर्ण पदक सहित),यू.जी.सी.नेट (पाँच बार) जन्मतिथि-03/07/1991 विशिष्ट पहचान -शत प्रतिशत विकलांग संप्रति-असिस्टेँट प्रोफेसर (हिंदी विभाग,जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय चित्रकूट,उत्तर प्रदेश) रुचियाँ-लेखन एवं पठन भाषा ज्ञान-हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी,उर्दू। रचनाएँ-अंतर्मन (संयुक्त काव्य संग्रह),समकालीन दोहा कोश में दोहे शामिल,किरनां दा कबीला (पंजाबी संयुक्त काव्य संग्रह),कविता अनवरत-1(संयुक्त काव्य संग्रह),यशधारा(संयुक्त काव्य संग्रह)में रचनाएँ शामिल। विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। संपर्क- ग्राम-टीसी,पोस्ट-हसवा,जिला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)-212645 मो.-08604112963 ई.मेल[email protected]