दर्द ऐ जिंदगी
कैसे कह दूं तुझसे कि अब प्यार नहीं,
ये दिल ही तो है कोई खिलौना तो नहीं ।
दर्द ऐ अश्क़ पीये हैं इस कदर आंखों ने ,
कि सुबह मेरी अब होती ही नहीं ।
छलकर मेरी तन्हाइयों को न बनाओ
तब्बसुम की अदाएं ओ बेखबर ,
बफाओं का सिला बेबफाई तो नहीं ।
दर्द ऐ गम यूँ मिले हैं जाम भरकर ,
देखकर भी हमारा दर्द ऐ दिल वर्षा ,
क्यों आसमान भी अब पिघलता नहीं।
दिल ही तो है ये कोई पत्थर तो नहीं,
न सता अब और ऐ जिंदगी मौत को ,
आंसुओं का समंदर यूँ ही उमड़ता नहीं।।
— वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़