दोहे
मोहन मन मोहित हुआ, लगे न दूजी ठोर ।
अब तो निरखो साँवरे, तनिक हमारी ओर ।।
हरपल बढ़ती जा रही, विरहा की ये पीर ।
विरहानल भड़का रहा, इन नैनों का नीर ।।
प्रिय तुमको देखे बिना, आवे नाही चैन ।
रोय रोय अँखियाँ दुखे, जागे सारी रैन ।।
ढूँढ़े तुमको साँवरे, मेरी अँखियाँ रोज ।
तुम बिन जीवन यूँ लगे, जैसे कोई बोझ ।।
ज्यों दिन बीते जा रहे, टूट रहा विश्वास ।
विनती सुन लो मोहना, यूँ ना तोड़ो आस ।।