भाषा-साहित्य

बाल साहित्य कैसा हो?

अनुभवी अध्यापक लोग बताते हैं कि बी.ए., एम.ए. आदि ऊँची कक्षाओं के छात्रों को पढ़ाना सरल है लेकिन कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों को पढ़ाना बहुत कठिन है। ठीक यही बात साहित्य के विषय में कही जा सकती है कि वयस्कों और प्रौढ़ों के लिए साहित्य रचना सरल है, उसकी अपेक्षा बाल साहित्य रचना कठिन है। यही कारण है कि सामान्य साहित्यकारों की संख्या जहाँ हजारों और लाखों में है, वहीं बाल साहित्यकारों की संख्या उँगलियों पर गिनी जा सकती है।

इसका कारण यह है कि बच्चों के लिए साहित्य रचते समय हमें स्वयं बच्चा बन जाना पड़ता है। यहाँ हमारी विद्वता और वाक्पटुता का उपयोग नहीं है, बल्कि अपने मस्तिष्क को बच्चों के मस्तिष्क के स्तर पर लाना पड़ता है। जब हम स्वयं बच्चे बनकर बच्चों के लिए साहित्य रचेंगे, तभी वह साहित्य बच्चों के दिमाग में जाएगा और अपना उचित प्रभाव छोड़ेगा।

इस सम्बंध में मैं अपने एक अनुभव को साझा करना चाहता हूँ। उन दिनों मैं लखनऊ में रहते हुए कम्प्यूटर विषय पर पुस्तकें लिखा करता था। एक बार एक प्रकाशक महोदय की ओर से मुझे कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए कम्प्यूटर की पाठ्य पुस्तकें लिखने का आदेश मिला। मैंने अपने ज्ञान और अनुभव के अनुसार वे पुस्तकें लिख दीं और वे प्रकाशित भी हो गयीं। मुझे उनकी नमूना प्रतियाँ भी प्राप्त हो गयीं।

इसके कुछ दिन बाद रक्षाबंधन पर मैं अपने शहर आगरा गया, तो उनकी एक-एक प्रति अपने भांजे हार्दिक को दे आया, जो उस समय कक्षा 3 में पढ़ रहा था। फिर कुछ समय बाद जब दीपावली पर मैं फिर आगरा गया और वहाँ भांजा मिला, तो मिलते ही वह अपने आप बोला- ‘मामा जी ! पहले मेरी समझ में कम्प्यूटर नहीं आता था, पर आपकी किताब पढ़कर सब समझ में आ गया।’ मुझे इस बात से कितनी खुशी हुई इसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। मैं यही तो जानना चाहता था कि मेरी पुस्तकों का छात्रों पर वांछित प्रभाव पड़ता है या नहीं।

बाल साहित्य रचते समय भी हमें हमेशा अपने पाठक वृन्द को ध्यान में रखकर ही शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए। इस सम्बंध में कुछ मोटे-मोटे सुझाव इस प्रकार दिये जा सकते हैं-
1. जहाँ तक सम्भव हो वाक्य छोटे होने चाहिए, ताकि बच्चों के दिमाग पर अधिक जोर न पड़े।
2. हमेशा बोलचाल के प्रचलित सरल शब्दों का प्रयोग करें, भले ही वे शुद्ध हिन्दी में न होकर अन्य भाषाओं के हों।
3. पैराग्राफ अधिक बड़े न हों। दो या तीन वाक्यों के पैराग्राफ उचित रहेंगे।
4. वाक्यों का गठन इस प्रकार हो कि जैसे आप सामने बैठे किसी बच्चे को समझा रहे हों, भले ही एक ही बात को दो या तीन तरह से कहना पड़े।
5. छोटी छोटी कहानियों और संवादों के माध्यम से किसी विषय को स्पष्ट करना अधिक अच्छा है।
6. संवाद अधिक हों तो भी चलेगा। यह कल्पना मत कीजिए कि शेष संवाद पाठक अपने आप समझ लेगा।
7. कविताओं में एक पंक्ति की लम्बाई अधिक न हो।
8. बच्चों की कवितायें आवश्यक रूप से तुकान्त होनी चाहिए।

यदि इन सुझावों को ध्यान में रखते हुए बाल साहित्य रचा जाएगा, तो वह निश्चय ही अपने उद्देश्य में सफल रहेगा।

विजय कुमार सिंघल

आषाढ़ कृ. 5, सं. 2074 वि. (14 जून 2017)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]