वो भी अजब नजारा था एक बूढ़ी माँ की छाती फटी की फटी रह गयी।
मुँह से तो वो एक शब्द भी नहीं बोली पर उसकी आँखें सब कुछ कह गयी।
जब उसने देखी तिरंगे में लिपटी अपने बेटे की लाश तो वो जड़वत हो गयी।
आँखों से उसके एक अश्रु नहीं निकला वो दूर कहीं शून्य में खो गयी।
लोग उसे दिलाशा दे रहे थे उसके परिवार को ढांढस बंधा रहे थे।
दूसरी और उसके बेटे की लाश पर बड़े बड़े मंत्री सर झुका फूल चढ़ा रहे थे।
फिर वो अचानक से झट से खड़ी हो कर फौजी अफसर की तरफ बढ़ती है।
मेरे पोते को भी फ़ौज में भर्ती कर लो वो उस अफसर से हाथ जोड़ कर कहती है।
मुझ जैसी और कौन भाग्यशाली होगी इस दुनिया में जिसका लाल देश के काम आया।
ऐसी वीरता दिखाई मेरे बेटे ने कि सारे देश का उसे प्यार और सलाम आया।
सौ लाल होते तो मेरे तो उनको भी देश के ऊपर वार देती।
बुलंद इरादों और मजबूत होंसलों का उनको मैं हथियार देती।
इतना कह कर उसने अपने पोते का हाथ फौजी अफसर को पकड़ा दिया।
फिर बोली जा मेरे जिगर के टुकड़े मेरे घर के चिराग तुझे देश के नाम किया।
देख उस माँ का त्याग और बलिदान आँखों में नमी आ गयी।
हमारे देश को “”सुलक्षणा”” ऐसी ही जननीयों की कमी खा गयी।
— डॉ सुलक्षणा