ग़ज़ल
बिखरी है हवाओं में तेरे नाम की खुशबू
मीरा की हर इक साँस में ज्यों श्याम की खुशबू
मस्जिद की अजानों में खुदा गूँज रहा है
मन्दिर के शिवालों में बसी राम की खुशबू
ग़ालिब की ग़ज़ल हो कि नरोत्तम के सवैये
आती है मुसलसल किसी पैगाम की खुशबू
दामन में तेरे कैद हुई कैसे तू जाने
रातों की महक, दिन की सुरभि, शाम की खुशबू
लिपटे हैं कलेजे सक कुछ इस तरह तेरे गम
रिन्दों से घिरी ‘शान्त’ हो ज्यों जाम की खुशबू
— देवकी नन्दन शान्त