ग़ज़ल
अब लूटपाट स्त्रीत्व हरण, सब चरम हुए
व्यभिचार छल कपट, यही सबके धरम हुए |
जब तेरी खिन्नता भरी आँखे भी’ नम हुए
समझा था’ दुःख तेरी’, यही तो भरम हुए |
थे महरबां कभी यहाँ भरपूर खूबियाँ
इस वक्त संत साधु भी’ अति बेरहम हुए |
वो चिडचिडा स्वभाव तेरा कर गया असर
दिल चूहा काँपता सदा ,डरपोक हम हुए |
कुछ कम हुआ तो’ कुछ में’ जियादा हुआ असर
दर सबकी ऊँची है, ज़रा मानव के कम हुए |
वो दौलते तमाम कमाई थी धोखे’ से
अब जब्त हो गए तो सरापा अलम हुए |
तेरी जाफा से’ और क्या’ नुकशान होना’था
मुझ पर तो’ वक्त का भी’ निराले सितम हुए |
सबके विलाप में भी’ हमारा विलाप था
इस भारती की’ गोद में सबके जनम हुए ||
कालीपद ‘प्रसाद’