राजनीति

लोकतंत्र का घिनौना रूप

वैसे तो लोकतंत्रीय प्रणाली शासन करने की सबसे बेहतरीन विधा है लेकिन अगर दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देशो के मतदाताओं और जनप्रतिनिधियों की मानसिकता भारतीय मतदाताओं और जनप्रतिनिधियों के मानसिकता जैसा हो जाय तो इसका बिकल्प ढूंढा जाना चाहिए क्योकि भारतीय लोकतंत्र इस समय जिस जाती और धर्म के दल दल में फंस चूका है अगर दुनिया के सारे लोकतंत्रीय देश उसी दल दल में फंस गए तो निश्चित तौर पर लोकतंत्रीय प्रणाली, तानाशाही प्रणाली से भी खतरनाक हो जाएगी. इस मानसिकता से जो जनमत तैयार होगा वह सारे सामाजिक समरसता को तहस नहस कर डालेगा. दुनिया में कोई भी ऐसा देश नहीं है जहा जाती-पति , धर्म और आर्थिक विषमता न हो और हमारे यहाँ के कर्णधारों ने इसका जिस तरह फायदा उठाया अगर उसी तरह अन्य लोकतांत्रिक देश के राजनीतिज्ञ फायदा उठाना शुरू कर देंगे तो इससे बुरी प्रणाली और कोई नहीं होगी. धीमे धीमे और देश इसे अपना भी रहे है. भारत में अगर केजरीवाल जीते है तो अमेरिका में ट्रंप भी जीत गए है. मतदाताओं के वैचारिक पतन का यह पराकाष्ठा है. भारत में तो राष्ट्रवाद महज कुछ लोगो की जिम्मेदारी बनकर रह गई है , अब तो सरकार को डराया जाता है की मेरी बात नहीं मानोगे तो हम इसाई , मुस्लिम या बौद्ध बन जायेंगे ! इन लोगो की प्रतिक्रिया कभी चीन पकिस्तान पर नहीं आती और कभी आती भी है तो भारत तेरे टुकड़े होंगे के रूप में आती है.
अजीब हालत है , कोई कहता है की हमें अरक्छान दो तब हम तुम्हे बोत देंगे , कोई कहता है की मेरा वेतन दुगुना करो तब हम तुम्हे बोट देंगे , कोई कहता है तुष्टिकरण करो तब बोट देंगे. ब्लैक मेल ही ब्लैकमेल ! राष्ट्रवाद , कोई मुद्दा नहीं.

राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय

रिटायर्ड उत्तर प्रदेश परिवहन निगम वाराणसी शिक्षा इंटरमीडिएट यू पी बोर्ड मोबाइल न. 9936759104