ग़ज़ल
लेके बर्बाद मोहब्बत तेरी ख़ुशी के लिए
हम तेरे शहर में आएंगे दो घड़ी के लिए ।
हम मुसाफिर हैं कहीं रात काट ही लेंगे
अब कहां जाएं कहो तुम्हीं बंदगी के लिए।
सुन गुज़र जाए शहर से अंधेरा कह दो
आज दिल अपना जलाएंगे रोशनी के लिए ।
हो मुमकिन पलकों पे ठहर जा एक पल
दिल का दरवाज़ा नहीँ है हर किसी के लिए।
दर्द आंसू फरेब ये मुझको नेमतें हासिल
और क्या चाहिए इस तन्हा ज़िंदगी के लिए।
फिर कभी आएंगे जहां में दुबारा “जानिब”
अजी अब कहां उम्र बची है आशकी के लिए।
— पावनी दीक्षित ‘जानिब’