गीतिका/ग़ज़लपद्य साहित्य

ग़ज़ल

जो किया छुपकर, मुहब्बत वो नुमायाँ हो गई
भूल जा, नाहक जमाने से तू परीशाँ हो गई |
काम नौटंकी थी’ अब तो नैन मिज्गाँ हो गई
चार मिसरे क्या कहे, वह तो ग़ज़लख्वाँ हो गई |
कर्म का देखो नतीजा, उम्र जिन्दाँ हो गई
शुभ नियत से धूर्त आत्मा मस्त उरियाँ हो गई |
छुप गए सब धूर्त ले कानून का कमजोर पक्ष
बादलों में ज्यों तपन की धूप पिन्हाँ हो गई |
याद आती थी वो’ बचपन की सभी घटना भी’ खूब
लेकिन अब तो जीस्त जंगल बीच निसियाँ हो गई |
पाक की ज़ोखिम भरी मंशा, भयानक धमकियाँ
देश रक्षा हेतु अब फ़ौज आज दरवाँ हो गई |
नाचना गाना, तराना दौर सब कुछ खो गया
जगमगाती वह हवेली अब तो’ वीराँ हो गई |
शब्दार्थ:
नुमायाँ-प्रकट , परीशाँ-व्याकुल ; मिज्गाँ-पलक
ग़ज़लख्वाँ-ग़ज़ल कहाने वाला
उम्र जिन्दाँ-उम्र कैद , कारावास
उरियाँ—पवित्र आत्मा ; पिन्हाँ—छिप जाना
निसियाँ—विस्मृत, भूल जाना
दरवाँ—न्योछावर हो जाना
कालीपद ‘प्रसाद

*कालीपद प्रसाद

जन्म ८ जुलाई १९४७ ,स्थान खुलना शिक्षा:– स्कूल :शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ,धर्मजयगड ,जिला रायगढ़, (छ .गढ़) l कालेज :(स्नातक ) –क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान,भोपाल ,( म,प्र.) एम .एस .सी (गणित )– जबलपुर विश्वविद्यालय,( म,प्र.) एम ए (अर्थ शास्त्र ) – गडवाल विश्वविद्यालय .श्रीनगर (उ.खण्ड) कार्यक्षेत्र - राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कालेज ( आर .आई .एम ,सी ) देहरादून में अध्यापन | तत पश्चात केन्द्रीय विद्यालय संगठन में प्राचार्य के रूप में 18 वर्ष तक सेवारत रहा | प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत्त हुआ | रचनात्मक कार्य : शैक्षणिक लेख केंद्रीय विद्यालय संगठन के पत्रिका में प्रकाशित हुए | २. “ Value Based Education” नाम से पुस्तक २००० में प्रकाशित हुई | कविता संग्रह का प्रथम संस्करण “काव्य सौरभ“ दिसम्बर २०१४ में प्रकाशित हुआ l "अँधेरे से उजाले की ओर " २०१६ प्रकाशित हुआ है | एक और कविता संग्रह ,एक उपन्यास प्रकाशन के लिए तैयार है !