पिता
#पिता को समर्पित एक कविता
#पिता करता है काम बहुत
उसको नहीं मिलता आराम बहुत
निशब्द पसीने में बहता रहता है
गर्मी सर्दी सहज सहता रहता है
मेहनत से कभी ना वह उबता है
क्षितिज पर रहता उसका सूरज ना डूबता है
रात थका हुआ आता है
फिर भी खूब मुस्कुराता है
एक बात से कभी-कभी घबराता है
बच्चों को कभी ना अपना दर्द बताता है
वह घर को हर रोज सींचता है
बैल बीमार हो तो हल भी खींचता है
उसका हाथ पैर थोड़ा बहुत कटा रहता है
मैंने देखा बापू का धोती कुर्ता फटा रहता है
हमारे लिए हर बार नई चीजें लाते हैं
उनको क्या चाहिए कभी नहीं बताते हैं
मेरे अंदर जो झलकती उनकी ही छवि है
कहते नहीं कुछ मगर बापू तो मूक कवि है