कविता

कविता : दर्द पिता की मौत का

उन क्षणों का दर्द
कोई नहीं समझ सकता इस संसार में
जब तक वो क्षण जिंदगी में ना आएं
घर में छोटा था मैं
पर
अचानक से बड़ा बन गया मैं
मुझे हालातों ने बड़ा बना दिया था
हस्पताल के उस पलंग पर
मेरी आँखों के सामने
वो पिता जी की लाश नहीं थी
वो तो जिम्मेदारियों की गठड़ी थी
ना जाने कहाँ से मेरे अंदर इतनी ताकत आई
एक पल में उस गठड़ी को सिर पर उठा लिया
बहनों को फोन किया
परिवारों वालों को सूचना दी
फिर साथ में आई भाईयों को संभाला
ना जाने कौन मेरे अंदर घुस गया था
ना जाने वो कौनसी ताकत थी
एम्बुलेंस करके पिता जी की लाश को घर लाया
माँ सुबक रही थी उसको चुप करवाया
भाई को दिलासा दिया
बहनों को समझाया
मैं खुद तो पत्थर सा हो गया था
मेरे आँसू सुख गए अचानक से ही
जब चले अर्थी को लेकर श्मशान में
तो दिल फट ही गया
मेरे आँसुओं के साथ इंद्रदेव भी बरसने लगे
जैसे ही दी मुखाग्नि मैंने
ना जाने वो ताकत कहाँ चली गयी
पैरों की जान निकल गयी
और मैं वहीं बैठ गया
चिता को देखता रहा टकटकी लगाए
परिवार वालों ने संभाला मुझे
कँधे से लगाकर समझाया
वो ही बातें कही जो मैं भी कहा करता था औरों को
पर उस दर्द को आज महसूस किया
आज अहसास हुआ मुझे दर्द का
आज मैं ही जानता था मैंने क्या खोया
अब छोटे कँधे मेरे जिम्मेदारियों के बोझ को उठाये थे
पूरे घर की जिम्मेदारी मुझ पर ही तो थी अब
तीसरे दिन सुबह फिर श्मशान में गया
पण्डित जी भी साथ में थे
लेकर पिता जी की अस्थियों को
चला परिवार वालों के साथ
उनकी मुक्ति की कामना मन में लिए
गढ़मुक्तेश्वर धाम की ओर
वहाँ जाकर सारी क्रिया, रस्में पूरी की
फिर गंगा मैया के बीच में अस्थियों को विसर्जित कर दिया
बस यहीं तक का साथ पिता जी का
अब तो यादों में ही रह गए पिता जी
उनकी मृत्यु का शौक मनाने आने वाले
देकर जा रहे थे मुझे झूठी तसल्लियाँ
पर सच बात तो मुझे “सुलक्षणा” कह गयी
बोली सिर पर हाथ रखकर मुझसे
बेटा तुम्हें खुद को संभालते हुए घर संभालना है
हम सांत्वना ही दे सकते हैं और कुछ नहीं
मदद एक बार करेंगे तो सौ बार अहसान जताएंगे
अब भगवान का ध्यान धरते हुए आगे बढ़ो
परमात्मा तुम्हें कामयाबी दे खुशहाली दे
उन्होंने कहा तुम्हारे पिता जी कहीं नहीं गए
वो साथ हैं तुम्हारे उनकी यादों के रूप में
और उनके द्वारा दिये व्यवहारिक ज्ञान के रूप में
जब भी कोई कार्य करोगे तुम
वो तुम्हारे अंदर से तुम्हें जरूर बताएंगे
कि तुम सही कर रहे हो या गलत
बस इसी बात से मुझे नई दिशा मिली
पिता जी के आदर्शों के साथ जीने की
— डॉ सुलक्षणा

डॉ. सुलक्षणा अहलावत

पूरा नाम : डॉ सुलक्षणा अहलावत (Dr. Sulaxna Ahlawat) पति का नाम : श्री विकास शर्मा वर्तमान पता : डॉ सुलक्षणा अहलावत C/o लक्ष्मी इलेक्ट्रिकल्स, सैनी एनक्लेव, वार्ड नंबर 4, फ्रेंड्स कॉलोनी, नजदीक केडीएम स्कूल, सोहना-122103 मोबाइल नंबर : 094166-80007 ईमेल एड्रेस : [email protected] शिक्षा :  एमए, एमफिल, पीएचडी (अंग्रेजी) जनम : 18 नवंबर 1981 रूचि : लेखन, अध्ययन कार्य क्षेत्र : प्रवक्ता अंग्रेजी (शिक्षा विभाग, हरियाणा सरकार) साहित्यिक यात्रा : रचनाएँ निम्न हिंदी समाचार पत्रों में प्रकाशित हो चुकी हैं: 1. खबर खखाटा (साप्ताहिक) चरखी दादरी हरियाणा 2. दिशेरा टाइम्स (साप्ताहिक) रायबरेली उत्तर प्रदेश 3. विद्रोही आवाज (साप्ताहिक) सूरत गुजरात 4. लोकजंग (दैनिक) भोपाल मध्य प्रदेश 5. शिखर विजय (साप्ताहिक) सीकर राजस्थान 6. देहाती रत्न (मासिक) कैथल हरियाणा 7. रेड हैन्डेड (दैनिक) दिल्ली 8. हमारा मैट्रो (दैनिक) दिल्ली 9. हरिभूमि (दैनिक) रोहतक हरियाणा 10. सौरभ दर्शन (पाक्षिक) भीलवाड़ा राजस्थान 11. भिवानी हलचल (साप्ताहिक) भिवानी हरियाणा       निम्न पत्रिकाओं में मेरी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं: 1. शिक्षा सारथी (मासिक) शिक्षा विभाग हरियाणा 2. ट्रू मीडिया (मासिक) दिल्ली 3. विश्वगाथा (त्रैमासिक) सुंदर नगर गुजरात 4. महकता अहीरवाल (मासिक) गुरुग्राम हरियाणा 5. फर्स्ट न्यूज़ (द्विमासिक) कोलकाता पश्चमी बंगाल 6. जय विजय (मासिक) नवी मुंबई महाराष्ट्र 7. अखण्ड भारत, स्वप्न से यथार्थ तक (त्रैमासिक) दिल्ली 8. पटवारी अभिमत (मासिक) भोपाल मध्य प्रदेश    निम्न वेबसाइट्स और ब्लॉग्स पर मेरी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं: 1. Pratilipi.com 2. Sahityapedia.com 3. Azadmedia24.com 4. Haryanafolk.blogspot.com 5. Haryanaviragni.blogspot.com 6. Mppatwari.com 7. uttamvidrohi.blogspot.in 8. Jayvijay.co 9. kavyasagar.com               मेरी निम्न ईबुक प्रकाशित हो चुकी है: 1. मेरे बोल मेरी पहचान (हिंदी कविता संग्रह) Syahee.com     निम्न समाचार पत्र और वेबसाइट पर मेरा साहित्यिक जीवन परिचय प्रकाशित हो चुका है: 1. भिवानी हलचल (साप्ताहिक) भिवानी हरियाणा 2. Samaysapeksh.com