कविता : बस एक प्रीत तुम्हारी
बस एक प्रीत तुम्हारी जिसने मुझे मीरा तुम्हें श्याम बनाया
बस एक बात तुम्हारी जिसने तन मन एक संग्राम रचाया
रच-रच स्वप्न घरौंदे नित मैं इर्द गिर्द हूँ धरती फिरती
कोण-कोण तेरे रूप सजाए हर चौखट पर दृष्टि बिछी
प्रण है दृढ और प्रीत परीक्षा सहज नही ये परम प्रतीक्षा
लहरों लहरों गिरती उठती आस नदी पर नाव खे रही
गहन दहन जीवन ज्वाला से अन्धकार हूँ दीप्त कर रही
उथलाई राहों पर प्रियतम नीर नयन मैं नीर भर रही
सिंचित संचित प्रीत संग ले पलकों को पतवार बनाया
बस एक प्रीत तुम्हारी जिसने…….