याद मृत भगिनी की
नहीं बुरा लगा मुझको,
बस दर्द पुराना छलक गया।
मृत भगिनी याद हुई मुझको,
नयनों से आंसू छलक गया।।
कीमत ना जानी मैंने,
हर कदम पे जब साथ रही।
हर मोड़ पे अब मैं रोता हूंँ ,
जब वह अपने साथ नहीं।।
बहन हमारी बिट्टी थी,
मेरी गलती मांँ से कहती थी।
मैं पिटता माँ के हाथों जब,
तब वह भी मुझसे पिटती थी।।
ना होना उसका खलता है,
भगवान की प्यारी चिट्ठी थी।
ले लिया प्रभू ने आत्मा जब,
चंचल तन उस पल मिट्टी थी।।
ना होना उसका खलता है,
मन हर पल उसमें रमता है।
रोता हूं यादों में खोकर,
बिन बहना कुछ ना जमता है।।
राखी पर सूना हाथ लखूं,
फिर बहन की यादों में तड़पूं।
यादों में जो मैं ‘जीता’ था,
हर उस पल को मैं ‘हार’ लखूं।।
अब दूर बहुत तू मुझसे है,
ना गले लगा सकता तुझको।
ना माफी मांग सकूं तुझसे,
ना अब तुझसे मैं जीत सकूं।
किसी और उदर से जायी को,
भाई बनकर जब प्यार करुं।
शंकित होती नजरें मुझ पर,
जब बहन समझ कर प्यार करुं।।
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।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7537807761