कविता

याद मृत भगिनी की

नहीं बुरा लगा मुझको,
बस दर्द पुराना छलक गया।
मृत भगिनी याद हुई मुझको,
नयनों से आंसू छलक गया।।

कीमत ना जानी मैंने,
हर कदम पे जब साथ रही।
हर मोड़ पे अब मैं रोता हूंँ ,
जब वह अपने साथ नहीं।।

बहन हमारी बिट्टी थी,
मेरी गलती मांँ से कहती थी।
मैं पिटता माँ के हाथों जब,
तब वह भी मुझसे पिटती थी।।

ना होना उसका खलता है,
भगवान की प्यारी चिट्ठी थी।
ले लिया प्रभू ने आत्मा जब,
चंचल तन उस पल मिट्टी थी।।

ना होना उसका खलता है,
मन हर पल उसमें रमता है।
रोता हूं यादों में खोकर,
बिन बहना कुछ ना जमता है।।

राखी पर सूना हाथ लखूं,
फिर बहन की यादों में तड़पूं।
यादों में जो मैं ‘जीता’ था,
हर उस पल को मैं ‘हार’ लखूं।।

अब दूर बहुत तू मुझसे है,
ना गले लगा सकता तुझको।
ना माफी मांग सकूं तुझसे,
ना अब तुझसे मैं जीत सकूं।

किसी और उदर से जायी को,
भाई बनकर जब प्यार करुं।
शंकित होती नजरें मुझ पर,
जब बहन समझ कर प्यार करुं।।

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।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7537807761

प्रदीप कुमार तिवारी

नाम - प्रदीप कुमार तिवारी। पिता का नाम - श्री दिनेश कुमार तिवारी। माता का नाम - श्रीमती आशा देवी। जन्म स्थान - दलापुर, इलाहाबाद, उत्तर-प्रदेश। शिक्षा - संस्कृत से एम ए। विवाह- 10 जून 2015 में "दीपशिखा से मूल निवासी - करौंदी कला, शुकुलपुर, कादीपुर, सुलतानपुर, उत्तर-प्रदेश। इलाहाबाद मे जन्म हुआ, प्रारम्भिक जीवन नानी के साथ बीता, दसवीं से अपने घर करौंदी कला आ गया, पण्डित श्रीपति मिश्रा महाविद्यालय से स्नातक और संत तुलसीदास महाविद्यालय बरवारीपुर से स्नत्कोतर की शिक्षा प्राप्त की, बचपन से ही साहित्य के प्रति विशेष लगव रहा है। समाज के सभी पहलू पर लिखने की बराबर कोशिस की है। पर देश प्रेम मेरा प्रिय विषय है मैं बेधड़क अपने विचार व्यक्त करता हूं- *शब्द संचयन मेरा पीड़ादायक होगा, पर सुनो सत्य का ही परिचायक होगा।।* और भ्रष्टाचार पर भी अपने विचार साझा करता हूं- *मैं शब्दों से अंगार उड़ाने निकला हूं, जन जन में एहसास जगाने निकला हूं। लूटने वालों को हम उठा-उठा कर पटकें, कर सकते सब ऐसा विश्वास जगाने निकला हूं।।* दो साझा पुस्तके जिसमे से एक "काव्य अंकुर" दूसरी "शुभमस्तु-5" प्रकाशित हुई हैं