लघुकथा — फर्क़
“मेरे लिए एक अच्छा-सा लेडीज सूट दिखाओ” लड़के ने दुकान में पहुंचकर कहा !
“जी साब,दिखाता हूं ! दुकानदार ने स्मार्टनेस दिखाई !
कुछ देर बात वह लड़का अपने घर पहुंचा , और एकांत का लाभ उठाकर घर में काम कर रही एक सीधी-सादी पर ग़रीब -सी लड़की की ओर गिफ्ट पैक बढ़ाते हुए बोला-” नया साल मुबारक़ हो ! ये लेडीज सूट का गिफ्ट केवल तुम्हारे और बस तुम्हारे लिए ! ” कहते हुए उस लड़के , जिसका नाम मयंक था, ने यमुना को गिफ्ट का पैकेट देना चाहा !
पर इनकार करते हुए यमुना ने सरलता पर दृढ़ता से कहा- ” नहीं,छोटे साब मैं यह तोहफा आपसे नहीं ले सकती, क्योंकि मैं आपके घर की कामवाली बाई हूं !और इस तरह किसी कामवाली बाई का किसी बाहरी मर्द से तोहफा लेना, हमारी मर्यादा में नहीं है ! ……..मालकिन यानि आपकी मम्मी जो भी देंगी, नये साल का इनाम मानकर मैं केवल वही स्वीकार करूंगी !…….आख़िर हम ग़रीबों को अपनी इज्जत का ख़्याल भी तो रखना पड़ता है न ?” यमुना ने सपाट शब्दों में कहा !
मयंक निराश हो गया ! पर उसके दिमाग में तत्काल एक आइडिया कौंध उठा ! वह फौरन वही गिफ्ट लेकर लिली के घर की ओर दौड़ पड़ा ! हालांकि उसकी लिली से कोई ख़ास जान-पहचान नहीं थी,पर उसने सोचा कि ट्राई मारने में कोई हर्ज़ नहीं है !
लिली को देखते ही,उसे वह पैकेट देते हुए बोला -“हैप्पी न्यु इयर डियर लिली,दिस गिफ्ट ओनली फॉर यु !”
गिफ्ट हाथ में आते ही लिली खुशी से उछल पड़ी ,और मयंक के गाल पर किस करते हुए बोली–” डियरेस्ट यु आर वैरी स्वीट ”
इधर ये दोनों खुश थे,और उधर दूसरी ओर अमीरी-ग़रीबी,शिक्षित-अशिक्षित,संस्कार – कुसंस्कार के बीच का फ़र्क व्यंग्य से मुस्करा रहा था !
— प्रो.शरद नारायण खरे