पिया की पाती
पाती प्रिय के नेह की आंखों में आँसू भर जाती है
पंथ तुम्हारा निहारकर धूल मुझे दे जाती है ।
प्रियवर तुम्हारा प्रेम निमंत्रण पढ़कर पलकें मेरी झुक जाती हैं ,
जैसे मुरझाये हृदय में पीर कोई भर जाती है ।
युगों युगों से रीत पुरानी चलती है ,
राधा होकर प्रेम दीवानी गीत विरह के गाती है ।
मत उलझाओ दिल को मेरे शूल भरी इन बातों से ,
जाओ हटो दूर मुझसे लाज मुझे अब आती है ।
नैना बनकर सावन भादों रोज बरसते रहते हैं ,
तुम क्या जानो प्रीत की भाषा आंखों में आंसूं दे जाती है ।
कब हुई है प्रतीक्षा प्रेम की पूरी, जीवन की यही कहानी है ,
नित प्रतिदिन प्रीत बस मुझको यूँ झुलसाती है ।
जैसे वन में पेड़ों को वर्षा की याद हर पल तरसाती है ,
प्रियवर तेरी याद भी मुझको प्रणय की याद दिलाती है ।
कब आओगे मेरे सूने आंगन में ,
जाने क्यों बरबस अँखियाँ द्वार पर पहरे लगाती हैं ।
जाने क्यों प्यासी अँखियाँ मेघों को भी लजाती हैं ।
— वर्षा वार्ष्णेय, अलीगढ़