गीत : जातिवाद का जहर
जातिवाद का जहर, थोड़ा इधर-थोड़ा उधर
सम्प्रदायों का कहर, थोड़ा इधर-थोड़ा उधर
खेल ऐसा स्वार्थी, सत्तालोलुप ही खेल रहे
सीना ज्यों खखोरता थोड़ा ठहर-थोड़ा ठहर।
करनी से गद्दी गई अब जाएं तो जाएं किधर
जातिवाद का जहर, थोड़ा इधर-थोड़ा उधर।।
जुल्म-ओ-सितम खेल जिनके बाएं हाथ का
चोरी औ सीनाजोरी से रिश्ता साथ-साथ का
चोर-उचक्के, भ्रष्टाचारी जिनके हों पहरेदार
सैंया भये कोतवाल, तो डर किस बात का।
उल्टी सांसें आती-जाती क्या गांव क्या शहर
जातिवाद का……………………थोड़ा उधर।।
आरक्षण औ’ संरक्षण के नाम से वादा कोरा
बापे पूत प्रापत घोड़ा नै बेसी तो थोड़मथोड़ा
औंधे मुँह पड़ा घड़ा है सत्ता तो बहुत बड़ा है
सत्ता अपनी चाल चले कुछ सीधा-कुछ टेढ़ा।
भोली जनता पर है होता चालू कानूनी कहर
जातिवाद का……………………थोड़ा उधर।
है जाति का जहर, उस पे नेताओं का कहर
एक करैला यूँ भी तीता औ उसपे नीम चढा
मंदिर-मस्जिद, गुरुद्वारे तक, धधक रहे ऐसे
लूट-पाट का शोर अराजक है कितना बढा।
वेष बदलकर स्वार्थी नेता भागे वे इधर-उधर
जातिवाद का……………………थोड़ा उधर।