वादा
बहुत आसां है
तोड़कर वादे को अपने
आगे निकल जाना
पर कभी फुर्सत में
सोचना बैठकर
इसकी एहमियत
जब हम गर्भ में
अंकुरित होते है
तो माँ खुद से करती है वादा
कि असहनीय पीड़ा के बावजूद
वो घुटने नही टेकेगी
और महफूज रखेगी
अपने उदर में हमारी सांसे
और जन्म के बाद
पिता कस लेता है कमर
खुद से करता है एक वादा
कि परिस्थिति कितनी भी
हो विषम
वो छत्र छाया बनकर
जिंदगी के आने वाले
हर झंझावातों में
हमसे आगे खड़ा होगा
और विवाह पर
हम बांध कर
अपनी धोती से
होने वाली पत्नी का आंचल
बनाते है
एक वादों की गठरी
इस यकीन के साथ
ताउम्र नही खुलेगा यह गठबंधन
और हम एक दुसरे से
करते है मौन वादा
कि हर सुख में दुख में
तमाम खुशियों और
हजारों गम के बीच भी
यह रिश्ता अनवरत चलता रहेगा
और हम बच्चे भी तो कभी
कर लेते है खुद से वादा
तमाम मुश्किलों के बावजूद
अपने कंधे पर बैठा कर रखेंगे उन्हे
जिनसे अस्तित्व है हमारा
तो कोशिश बस इतनी सी हो
जिंदगी के उलझनों में
उलझकर गलती से भी न
टूट जाए कोई वादा
और खो दे मायने हम
दुनिया में खुद के होने का
अमित कु अम्बष्ट “आमिली “