इंसानियत –एक धर्म (भाग –इक्कीसवां )
असलम के कमरे में दाखिल होते ही रजिया कुर्सी से उठकर खड़ी हो गयी । जबकि असलम ने आते ही दरोगा पांडेय जी को आदतन सैलूट किया । मुस्कुरा कर उसका अभिवादन स्वीकार करते हुए पांडेयजी ने उसे कुर्सी पर बैठने का आग्रह किया ।
रजिया के उठकर खड़े होने से खाली हुई कुर्सी पर बैठते हुए असलम ने पांडेय जी को धन्यवाद अदा किया । बिना कुछ कहे पांडेय जी ने एक फाइल खोली और उसमें से कोई कागज निकालकर उसपर असलम से हस्ताक्षर करने के लिए कहा । असलम ने बिना कुछ कहे हस्ताक्षर कर दिया लेकिन रजिया की सवालिया नजरों को पांडेयजी ने बखूबी पहचान लिया था और असलम के हस्ताक्षर करने के बाद फ़ाइल रजिया की तरफ बढ़ाते हुए उससे भी एक जगह हस्ताक्षर करने के लिए कहा और उसे बताया ” दरअसल बेटा ये कानूनी खानापूर्ति है । इसमें लिखा है कि असलम जो कि पुलिस हिरासत में था माननीय जज साहब के आदेश के अनुसार आज उसे सही सलामत रिहा किया जा रहा है । इसमें सभी तथ्यों का समावेश है जैसे मुकदमा नंबर ,आदेश नंबर ,हिरासत की अवधि , रिहाई का समय वगैरह वगैरह और सबसे बड़ी बात एक गवाह की हैसियत से तुम्हारा हस्ताक्षर लिया गया है । इस कागज़ के द्वारा तुम्हारे सामने असलम ने जमानत की शर्तों का पालन करने का वचन दिया है । ” कहते हुए पांडेय जी ने रजिया से भी एक हस्ताक्षर करने के लिए कहा । रजिया को सकुचाते हुए देखकर असलम ने कहा ” कोई बात नहीं बेगम ! सही कर दो । साहब तो अपने ही हैं । कोई बेगाने थोड़े ही न हैं जो सकुचा रही हो । “
रजिया के हस्ताक्षर करने के बाद वह कागज फ़ाइल में सहेजने के बाद पांडेयजी उठ खड़े हुए और राखी की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए बोले ” तुम बात की धनी हो बेटी ! और साथ ही खुशनशिब भी कि तुम्हें वकील राजन पंडित का साथ मिला । लेकिन यह राह इतना आसान नहीं है बेटी ! तुम्हें खुद से वादा करना होगा कि चाहे जो भी मुश्किल आये तुम्हें अपने इरादे पर कायम रहना होगा और सभी चुनौतियों का सामना करना होगा । मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं ‘ तुम अपने मकसद में कामयाब रहो और दुनिया में इंसानियत की मिसाल कायम करो । ‘ best of luck . मैं जरा किसी काम से बाहर निकल रहा हूँ । अब तुम जा सकते हो असलम लेकिन भुलना नहीं सुबह ग्यारह बजे तुम्हें यहां अपनी उपस्थिति दर्ज करवानी है । bye everybody . ” कहते हुए पांडेयजी उठे और तेज कदमों से चलते हुए कक्ष से बाहर निकल गए ।
उनके जाते ही कुर्सी से उठते हुए राखी ने अपने पर्स में रखे हुए पैसे जो रजिया ने उसे दिए थे असलम की तरफ बढ़ाते हुए कहा ” असलम भाई जान ! इंसानियत की डगर पर चलते हुए तुमने मेरे लिए जो किया है उस अहसान का बदला तो मैं अपनी जान देकर भी नहीं चुका सकती । इस अहसान के बदले दुर्भाग्य से तुम कानून का मार तो झेल ही रहे हो अब मुझे भी कुछ करने का मौका देने की कृपा करो । मैंने तुम्हें अपना भाई माना है और इस नाते मैं तुम्हारी बहन हुई । क्या एक बहन अपने भाई के लिए इतना भी नहीं कर सकती ? ये वो पैसे हैं जो रजिया भाभी ने मुझे तुम्हारी जमानत कराने के लिए दिए थे । कृपया इन्हें रख लो और यह समझ लो इस पूरे मुकदमे का खर्च मैं उठाउंगी । “
असलम प्रशंसात्मक नजरों से रजिया की तरफ देखते हुए रजिया के दोनों कंधों को पकड़ कर उसकी आँखों में झांकते हुए गंभीर स्वर में बोला ” बेगम ! मैं तुम्हारा शुक्रिया कैसे अदा करूँ ? मेरी गैरमौजूदगी में तुम्हें मेरे लिए इस रकम का इंतजाम करने में काफी मुसीबत उठानी पड़ी होगी । मुझे तुम पर फख्र है बेगम ! शाबाश ! ” कहते हुए उसने रजिया को गले से लगा लिया और फिर अगले ही पल राखी की तरफ देखते हुए शिकायती लहजे में बोला ” मेरी प्यारी बहना ! एक तरफ तो तुम मुझे भाई कहती हो और जब मैं एक भाई के नाते अपना फर्ज पुरा कर रहा होता हूँ तो उसे अहसान बताने लगती हो । जब तुम मेरे काम को जो कि मेरा फर्ज था एक अहसान बताती हो तो सचमुच मेरा दिल खून के आंसू रोता है । अहसान किस बात का ? क्या अहसान इसलिए कि मैं एक मुसलमान हूँ ? फर्ज करो यदि मेरी जगह तुम्हारा भाई होता और जो मैंने किया वही सब उसने किया होता तो क्या तुम उसे भी अहसान मानती ? नहीं न ! और ऐसा इसलिए क्योंकि वह तुम्हारा अपना होता । और अपनों में अहसान जैसी कोई बात नहीं होती लेकिन तुमने मुझे अपना कहाँ समझा ? मैं भी यदि अपना होता तो तुम मेरे किये को अहसान बता कर मेरा दिल नहीं दुखाती । ” कहते कहते असलम की सांसें उत्तेजना से तेज हो गयी थीं । खुद को संयत करते हुए धीमे स्वर में उसने आगे कहा ” लेकिन गलती तुम्हारी भी नहीं है । मैं ही पागल हूँ जो इतने सालों से चली आ रही भेदभाव की गहरी खाई को पाटने की कोशिश करने लगा । आखिर कोई मुझे अपना क्यों समझेगा ? मुझ पर मुसलमान होने का ठप्पा जो लगा है । एक मुसलमान किसी का मददगार कैसे हो सकता है ? एक दिन में सालों से बना हुआ नजरिया कैसे बदला जा सकता है और मेरी कोशिश समाज के इसी नजरिये को बदलने की है । ……” अभी उसका प्रवचन जारी ही रहता अगर राखी ने बीच में ही उसे टोक नहीं दिया होता ” तो ठीक है न असलम भाई ! बस मैं अभी से और आगे भी मानती रहूंगी कि तुमने मेरे ऊपर कोई अहसान नहीं किया है बस ! अब खुश ! “
“लेकिन तुम्हें यह पैसा वापस लेना ही पड़ेगा । तुमने अपनी तो कह दी अब मेरी भी सुनो ! जैसे तुम चाहते हो न कि मुसलमानों के बारे में लोगों का नजरिया बदले तो मेरी भी यही ख्वाहिश है कि कोई भी हिन्दू शर्मसार ना हो पाए । “
अचानक चौंकते हुए असलम बोल पड़ा ” अब इसमें हिन्दू के शर्मसार होने की बात कहां से पैदा हो गयी ? “
राखी मुस्कुराती हुई बोली ” असलम भाई ! तनिक सोचो ! पूरे रामपुर शहर के लोगों की निगाह इस घटना पर लगी हुई है । लोग पल पल की खबर रख रहे हैं । ऐसे में जब लोगों को पता चलेगा कि वह लड़की जिसके लिए उस बहादुर सिपाही ने जो कि धर्म से एक मुसलमान था अपने स्वधर्मीय अफसर की हत्या कर दी और वही लड़की उस सिपाही की मदद किये बिना आराम से उससे किनारा कर गयी ‘ तब सोचो लोग क्या कहेंगे ? तुम्हारे धर्म के ठेकेदार तब घूम घूम कर अपना गला फाड़ फाड़कर चिल्लायेंगे और दुनिया को बताएंगे ” देखो ! देखो ! इस अहसान फरामोश लड़की को । यह लड़की ही नहीं इसकी तो पूरी कौम ही अहसान फरामोश है । जिस बंदे ने अपनी जान पर खेलकर उसकी इज्जत और जान बचाई हो वह संकट की इस घड़ी में उसके साथ खड़ी भी नहीं है और न ही कोई मदद कर रही है । इतना ही नहीं उसकी जमानत के लिए होनेवाला खर्च भी उस सिपाही से ही वसूल कर रही है । बोलो ! क्या मुझे ऐसा सुनना अच्छा लगेगा ? मेरी जगह रहकर सोचो और महसूस करो फिर बोलो । “
असलम अभी आगे कुछ कहने ही वाला था कि तभी असलम के रिहाई की खबर को कवर करने वाले पत्रकारों का एक समूह थाने के उस कमरे में घुस गया और फिर अगले ही पल पत्रकारों के कैमरे के फ़्लैश चमक उठे ।