कविता : दरमियां
दो टूक की
खामोशी सिमटी
साज़िशों में उलझ गये…
कुछ तो था…….
तेरे-मेरे दरमियां…
वक़्त के मंज़र
पल के अहसास
बादलों में उड़ गये..
कुछ तो था……
फैसला …..तेरे-मेरे दरमियां
शाम की फ़िज़ा
संदल सी हवा
रुख बदल गये….
कुछ तो था ..
फासला….तेरे-मेरे दरमियां
प्यार की बात
बेइंतहा जज़्बात
हूक बन ठहर गये….
कुछ तो था…
टूटा हौसला…तेरे-मेरे दरमियां
समन्दर गहरा
आँखों में पहरा
नमी बन उतर गये…
कुछ तो था ….
आइना रूठा….तेरे-मेरे दरमियां…
नंदिता ज़िंदगी
इश्क़ बंदगी
तुम रूह में समां गये..
कुछ तो था..
बाकी वफ़ा में….तेरे-मेरे दरमियां…!!
— नंदिता तनुजा