जो मुझको पता होता ये वक़्त लेगा यूँ अँगड़ाई,
तुम्हारी नजरों से मैंने ना होती यूँ नजरें मिलाई।
खुदा जानता है उससे ज्यादा तुझको चाहा मैंने,
इसीलिए खुदा ने लिखी तकदीर में होनी जुदाई।
देखो तो ओस की बूंद सा जीवन मिला मुझको,
तुम्हारी मोहब्बत की सीप ने मैं मोती थी बनाई।
तुम्हीं कहो शिकवा गिला तुमसे करूँ भी तो कैसे,
जिंदगी तो वो ही थी जो तेरे संग मैंने थी बिताई।
“सुलक्षणा” की मजबूरी का आलम तो देखो जरा,
तकिये के कागज पर लिखे आँसुओं से कविताई।
©® डॉ सुलक्षणा