ग़ज़ल : मेरी रूह
मोहब्बत क्यों बुला रही
शाम ढल आज़मा रही
रात का चाँद हमनवां
बादलो में छुपा रही
ख्वाहिशों से कहे शमां
फासले तो सज़ा रही
सर्द आहें कज़ा बनी
चांदनी यूँ खफ़ा रही
ज़िक्र तेरा वफ़ा कहाँ
फैसले की अता रही
वादियों में मिले कभी
चाहतों की दुआ रही
सिलसिले ख्वाब बन जिए
नंदिता को मना रही !!
— नंदिता तनुजा