माता-पिता
मेरे लिए तो हर दिन ही
मातृ- पितृ दिवस !
पलभर के लिए भी दोनों
ओझल नहीं होते
मेरी यादों से
लेकिन, फिरभी !
जब किसी खास दिन
कानों में गूंजता है
पितृ दिवस का शोर !
तो आँखें नम और मन
शांत हो जाता है
चाहती हूँ लिखूं मैंभी !
एक मर्मस्पर्शी कविता
पर कलम साथ नहीं देती
खामोश चुप्पी साधे रहती
शायद, यही सोचती !
चुका नहीं पाएगी मेरी कविता
उनके प्यार को चंद गिने-चुने
शब्दों के पिरोए एहसासों से
इसी ख्याल से भावनाएं मन में दवाएं
चुपचाप रोती हूँ मैं और कविता
और देखते ही देखते गिले हो जाते है
कुछ लिखने से पहले ही कोरे पन्नें
जिसपर चलने से भी
सिसकती है कलम
हाँ ! नहीं लिख पाती हूँ मैं
अपने स्वर्गीय माता-पिता का
अनमोल हीरे जैसा प्रेम
जिसकी चमक से !
मेरा सम्पूर्ण जीवन उजियारा हो उठा
अहम है जीवन में माँ-बाप का होना
आगे कुछ और लिखने का सामर्थ्य नहीं
बस ! मेरे पूज्य माता-पिता को
मेरा शत-शत नमन।