मेरा मन साथ देता ही नहीं
मेरा मन साथ देता ही नहीं है
समय के साथ चलना चाहता हूँ
न यादों से निकल पाया अभी तक
तुम्हारे साथ मन, मैं अन-मना हूँ
न भाती हैं मुझे रंगीनियां भी
न तो ये शोरगुल बाजार का ही
न मुझ पर है असर बदले जहाँ का
असर अब तक है केवल प्यार का ही
अधूरे प्यार की मैं वेदना हूँ
समन्दर हूँ अतुल जलराशि मुझमें
बुझा पाया न लेकिन प्यास तक मैं
ज़मी की धूल सा लिपटा हुआ था
न बन पाया तभी अहसास तक मैं
बहुत रोया मगर मैं अनसुना हूँ
हमेशा साथ रहती हैं भले ही
न कोई पूछता परछाइयों को
कहाँ परवाह खंडित सूत्र की हो
खोजते लोग बिखरी मोतियों को
भग्न उस सूत्र की संवेदना हूँ
:प्रवीण श्रीवास्तव ‘प्रसून’