रवायतें
दिल जार जार है ना जाने किसका इंतजार है ,
आंखों में हैं आंसूं पर लबों पे इनकार है ।
बेखुदी है प्यार की या रुसबाइयों का जहर है ,
इरादों में हमारे आज भी जंग का इजहार है ।
सलवटें हैं इरादों में या फिक्र है जमाने की ,
दिलों में जाने क्यों छिड़ी रार ही रार है ।
गम हैं बेइंतहा जिधर भी नजर उठाइये ,
कब्र है दिलों की और बेईमान बहार है ।
रवायतों पर आज भी फना है इश्क़ ,
कैद में है बुलबुल,रकीब पर जा निसार है।
मयखाने में बंद है शराब की बोतलें कुछ इस कदर ,
सड़क पर है इंसानियत ,रोशन हुए बाजार हैं ।
शौक ऐ दिल्लगी का न इस कदर फरमाइए कि ,
लगता आज इश्क़ भी सिर्फ बाजारू इसरार है ।।
— वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़