1946 के प्रारम्भ में बच्चू सिंह के नेतृत्व में भारतीय वायुसेना में विद्रोह हुआ। इसके कुछ ही दिन बाद 15 फरवरी 1946 तक यह क्रांति सेना के तीनों अंगों में पहुँच गई। यह पंजाब से लेकर असम, मद्रास, अंडमान, और अदन तक यह सभी प्रमुख सैन्य केन्द्रों में फैल गई। इसी समय राजधानी दिल्ली समेत कई जगहों पर पुलिस ने भी हड़ताल कर दी।
इस क्रांति को पर्याप्त जनसमर्थन मिला। मजदूरों ने ब्रिटिश लोगों के कारखाने बंद कर दिये, दूकानदारों ने क्रांतिकारियों के भोजन-पानी के लिए अपनी दुकानें खोल दीं। ‘जय हिन्द’, ‘नेताजी सुभाष जिंदाबाद’, ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ के नारे सारे देश में गूंजने लगे थे। लगता था कि ब्रिटिश प्रशासन के सामने 1857 की पुनरावृत्ति हो गई हो।
अब नेहरू सहित सभी कांग्रेसी नेताओं को डर हुआ कि यदि यह स्वतन्त्रता संग्राम सफल हुआ, तो सत्ता सुभाषचन्द्र बोस जैसे नेता को मिल जाएगी। जिन्ना को डर हुआ कि यदि हिन्दू-मुस्लिम- सिख-पारसी सब मिलकर लड़ेंगे, तो देश विभाजन नहीं हो पाएगा। अंबेडकर को डर हुआ कि सब मिलकर एक हो जाएंगे, तो 1942 में ही समाप्त हो चुकी पूना समझौते की अवधि और नहीं बढ़ेगी। अतः सबने मिलकर इस स्वतन्त्रता संग्राम का विरोध किया।
क्रांति के प्रभाव को कम करने के लिए 19 फरवरी को तत्कालीन वायसराय लार्ड वेवेल ने भारत का संविधान बनाने के लिए कैबिनेट मिशन बनाने की घोषणा करके राजनीतिक नेताओं को अपने साथ मिला लिया। इसके साथ ही मुंबई के कोलाबा तट पर संचार पोत HMIS ‘तलवार’ पर तैनात भारतीय मूल के नौसैनिकों ने हड़ताल की सूचना भेजी।
माना जाता है कि ‘तलवार’ पोत पर हड़ताल करने से पहले उन नौसैनिकों ने पोत के कमांडर एफ.सी. किंग से अत्यंत खराब खाने के विरुद्ध शिकायत की थी, किन्तु किंग ने बदतमीजी से कहा था- ‘भिखारी चयन नहीं कर सकते’। तब ‘तलवार’ पोत पर पंजाब के दो सैनिकों सिग्नलमैन मोहम्मद शरीफ खान और पेट्टी ऑफिसर मदन सिंह के नेतृत्व में एक कमेटी बन गई, जिसने विद्रोह का प्रचार शुरू कर दिया।
हालांकि बच्चू सिंह की इस क्रांति में आईएनए के झंडे लहराए गए थे; लेकिन तलवार के नेताओं ने कांग्रेस, लीग और कम्युनिस्ट दलों के झंडे लहराए। ‘तलवार’ समुद्र में सिग्नल का एक संचार पोत था। अतः उसके द्वारा दूसरे जहाजों व सैन्य केन्द्रों को सूचना भेजी गई कि क्रांति का केंद्र तलवार पोत है। इसी के साथ कम्युनिस्ट पार्टी ने इसको आरआईएन का विद्रोह घोषित कर उसी के रूप में समर्थन दिया।
अब हड़ताल के पीछे बच्चू सिंह की क्रांति को खत्म कराने के लिए कांग्रेस ने अरुणा आसफ अली को नियुक्त किया। वह हर क्रांति केंद्र पर जाकर सैनिकों को समर्थन देने के बहाने ‘तलवार’ पोत के नेताओं के संपर्क में रहने की अपील करती थी। जिन्ना और तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना आजाद सैनिकों को विश्वास दिलाते थे कि यदि वे आत्मसमर्पण कर देंगे, तो उनके खिलाफ कोई कार्यवाई नहीं होगी और राजनेता उनका साथ देंगे।
24 फरवरी को ‘तलवार’ पोत कमेटी ने हथियार डाल दिए। ‘तलवार’ एक संचार पोत था, अतः इससे हर केंद्र में यह प्रचार हो गया कि हड़ताल खत्म हो गई है; कांग्रेस, लीग, कम्युनिस्ट दलों ने भी हर जगह यह सूचना पहुंचा दी कि हड़ताल वापस ले ली गई है। इससे सभी जगह क्रांतिकारियों का जोश ठंडा पड़ गया और सैनिकों ने हथियार डाल दिये। बाद में इसे ‘तलवार’ पोत पर शुरू हुई हड़ताल बताया गया, जबकि यह ‘तलवार’ पर खत्म हुई थी।
इस तरह विकलांग वीर बच्चू सिंह के नेतृत्व में उभरा यह स्वतन्त्रता संग्राम एक साधारण हड़ताल के रूप में समाप्त हो गया। लेकिन इसने ब्रिटिश राज के मन में यह डर बैठा दिया कि यदि अब कोई स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ, तो उसे दबाने के लिए न तो सेना होगी, न पुलिस, केवल राजनेताओं का आश्वासन ही होगा। अतः उन्होंने भी अपनी सुरक्षा के लिए भारत को छोड़ने की योजना बना ली।
— विजय कुमार सिंघल