गीतिका/ग़ज़ल

अच्छा नहीं लगता

मंज़र दिल का उदास अच्छा नहीं लगता
तुम नहीं होते पास अच्छा नहीं लगता

तेरी क़दबुलन्दी से नहीं इनकार कोई
लेकिन छोटे एहसास, अच्छा नहीं लगता

जैसे भी हैं हम रहने दो वैसा ही हमको
बनके कुछ रहना खास अच्छा नहीं लगता

जब से तेरी यादों ने बसाया है घर दिल में
ये क़ाफ़िला-ए-अन्फास अच्छा नहीं लगता

ये मुखौटों से कह दो जाकर नदीश अब
सच का इतना भी पास अच्छा नहीं लगता
लोकेश नशीने नदीश