चिन्दी चिन्दी हिन्दी (व्यंग्य)
चिन्दी चिन्दी दिन गुजरा चिन्दी चिन्दी रात गयी
चिन्दी चिन्दी हिंदी में चिन्दी चिन्दी बात गयी ।
हमारे देश में कश्मीर से कन्याकुमारी तक हिंदी का सिर्फ नाश होता है मगर बिहार से बंगाल आते आते सत्यनाश हो जाता है । बिहार और बंगाल का बॉर्डर छूते -छूते कर्ता और कर्म दोनों को पता नहीं रहता कि कहाँ से कहाँ आ जाएं । वैसे कर्ता के सामने कर्म आता ही आता है ,ये कोई बिहार से सीखे।
हमारे बिहार और बंगाल में क्रियाकर्म इतना प्रभावी है कि कर्ता का पता ही नहीं चलता और कर्म मीडिया में छा जाता है । कर्ता नदारत रहता है या कहूँ कि अंतर्ध्यान की अवस्था में रहता है ।है भी !और नहीं भी ,बिलकुल वैसे ही जैसे कोई भी मंत्री पहले करोड़पति फिर अरबपति हो जाता है, यहां करता नदारत है लेकिन कर्म हो रहा है ।
ये मंत्री सिर्फ कर्मों से ही नहीं लोगों को लुभाते हैं बल्कि अपनी हिंदी से भी गुदगुदाते रहते हैं ।बुद्धिमत्ता बेवकूफी से पीछे है और रहेगी इस देश में जो रोमांच वेबकूफी में है वो विद्वता में नहीं, विद्वान अपनी आन, मान मर्यादा के चक्कर में ही पड़ा रहता है इतने में बेवकूफ़ आगे बढ़ लेता है ,वो इन मान मर्यादाओं के चक्कर में नहीं पड़ता वो सिर्फ टारगेट पर नज़र रखता है ।
एक दिन पता चला मंत्री जी की भैंस खो गयी है ।बड़ा उदास मुँह बनाये हुए चले जा रहे थे हमने पूछ लिया क्या हुआ ? वो बोले, अरे हमारी भैंस खो गयी है दो घंटे में नहीं मिली तो सेना बुलानी पड़ेगी। हमने कहा मंत्री जी आपकी भैंस है या पाकिस्तान का बॉर्डर ! मंत्री जी बोले अरे हमारी भैंस है किसी ऐरे गैरे की नहीं, एक मंत्री की भैंस भी मंत्री के बराबर होती है और हमें लगा मंत्री भैंस के बराबर , तभी शायद मंत्री और भैंस दोनों को भ्रम होता रहता है खाने पीने के मामले।
तभी देखते हैं मंत्री जी का संतरी लिखे हुए भाषण की प्रति लेकर दौड़ा चला आ रहा है। हमने पूछ लिया भैया मैराथन में हो या मंत्री की ! संतरी बोला मंत्री ! मंत्री दौड़ में हूँ । इनका काम खत्म करके फिर अपना शुरू । पहले मंत्री जी को भाषण दे आऊं, हम फिर हैरानी से पूछ बैठे मंत्री जी को भाषण वो भी तुम दोगे!
अरे नहीं दादा जुबान फिसल गई थी जैसे मंत्रियों की कलम फिसल जाती है । बड़े मशहूर लेखी….का हैं,उन्हीं से लिखवा कर लाये हैं ।अच्छा वो ही जिन्हें अभी अभी सम्मानित किया गया था वो ही न!(हमने पूछा ।जी जी वो ही।
मगर उनकी हिंदी में तो बिंदी ही बिंदी हैं हुजूर ,कभी नुक़्ता कभी अनुस्वार कभी …..अरे जाने दीजिए हुजूर ,बस वो सम्मानित हैं इतना याद रखिए।
अच्छा जरा देखें क्या लिखा है अरे सवस्थ नहीं भाई स्वस्थ जरा संभल के संतरी कहाँ सुनने वाला । मंत्री जी ने बड़ा दम से अपनी बात रखी स्वस्थ भारत स्वच्छ भारत मगर लिखते हुए उनकी कलम की पोल खुल गयी ।अब मंत्री जी संतरी से बड़ा नाराज, बोले, व्हाट्सअप नहीं कर सकता था भोंदू, मैं क्या युवराज से कम हूँ क्या !!संतरी अवाक्! बोला नहीं महाराज! कम कहाँ ,आप तो एक कदम आगे हैं।