असम और बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा
आजादी के बाद असम में पहली बार भाजपा की सरकार बनी है। वो भी पूर्ण बहुमत की सरकार। साथ ही असम के कुल 14 सांसदों में से 7 सांसद भी भारतीय जनता पार्टी के ही हैं। इन आंकड़ों को देख ऐसा लग रहा है जैसे वर्तमान समय में असम के जनगण के मन में बस भारतीय जनता पार्टी का ही जादू सिर चढ़कर बोल रहा है और प्रदेश की जनता के मन में इस वक्त भाजपा के प्रति एक अवर्णनीय विश्वास का माहौल है। वैसे ये चमत्कार कोई एकदिन में संभव नहीं हुआ है बल्कि इस आशातीत समर्थन के पीछे हमारे देश के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी का बहुत बड़ा योगदान है। दरासल लोकसभा व असम विधानसभा चुनावों के दौरान हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने असम की जनता से ये वादा किया था अगर उनकी पार्टी केन्द्र व राज्य की सत्ता में आती है तो वे असम के समस्याओं के समाधान के लिए निर्णायक फैसला लेंगे। अपने भाषणों में उन्होंने असम की जनता को हर संभव विश्वास दिलाया था कि उनके सत्ता में आते ही असम से बांग्लादेशियों को निकाल बाहर किया जायेगा और असम-बांग्लादेश सीमा को भी कंटीले तारों से सील किया जायेगा। पर केन्द्र में मोदी सरकार के तीन वर्ष पूरे होने के बाद भी अब तक इन वादों को पूरा नहीं किया गया है। जबकि अब प्रदेश में भी भाजपा की अपनी सरकार है।
सुनने में छोटा लगने पर भी असम के लिए बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या एक गंभीर समस्या है। या यूं कहें कि सारे समस्यायों की जड़ है तो भी अतिशयोक्ति नही होगी। क्योंकि सीमा पार से निरंतर चलते घुसपैठ की समस्या ने प्रदेश की आर्थिक,सामाजिक व राजनैतिक स्थिती को बुरी तरह से प्रभावित किया है। जिसके फलस्वरूप असम के नागरिकों के जीवन और अस्तित्व पर एक प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया है। आज अवैध बांग्लादेशी घुसपैठीयों के कारण ही असम के स्थाई निवासी व जनजातीय लोग अपने ही गृहराज्य में दूसरे दर्जे के नागरिकों सा जीवन बीताने को वाध्य हैं। और इन्हीं वजहों से दिन-प्रतिदिन असम के जनमानस में असुरक्षा की भावना जाग्रत हो रही है। जिसका नतीजा यह हुआ है कि राज्य में स्थायी निवासीयों और बाहरी राज्यों से आये अन्य भारतीयों के बीच एक अविश्वास की भावना पनप रही है।
वैसे ब्रिटिशकाल से ही असम विभिन्न भाषा-भाषी व धर्मावलम्बियों का मिलनक्षेत्र रहा है। देश के अन्य प्रदेशों की भांति यहां भी देश के हरेक कोने से आनेवाले विभिन्न धर्म व भाषा-भाषी के लोग आपस में मिलजुल कर आपसी प्रेमभाव के साथ रहते हैं। असम में बाहरी प्रदेशों से आनेवाले अधिकत्तर लोग व्यवसाय से जुड़े होते हैं। जो राज्य में बिना किसी समस्या के बड़े आराम से अपना व्सवसाय चलाते हुये अपना और परिवार का गुजारा करते हुये देश के विकास में सहयोगी बनते हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से भी असम काफी सौहार्दपूर्ण रहा है। शंकर-माधव के इस पवित्र धरती पर परंपरागत हिंदुओं के अलावा मुसलमान,सिख,जैन व बौद्ध धर्म के लोग भी प्रेमपूर्वक रहते आये हैं। आदिशक्ति मां कामख्या के गृह स्वरूप इस प्रदेश ने आदिकाल से ही सभी धर्मों को बाहें खोलकर अपनाया है। किंतु वर्तमान समय में असम की यही परंपरा राज्य के लिए घातक बनते जा रही है। आज असम विभिन्न समस्याओं से जूझ रही है और इन समस्याओं में सबसे बड़ी समस्या है बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या। जिसने अब अपने साथ कई और समस्याओं को भी जन्म देना आरंभ दिया है। जिस कारण असम के लोग आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने को मजबूर हो रहें हैं।
अगर बात बांग्लादेशियों के घुसपैठ की करें तो भारत सरकार द्वारा कराये गये 2011 के जनगणना के अनुसार जहां प्रदेश की कुल जनसंख्या वृद्धि दर महज 16.9 प्रतिसत थी वहीं प्रदेश में मुस्लमानों की जनसंख्या का वृद्धि दर लगभग 29.59 प्रतिसत था। इन आंकड़ों से सहज ही ये अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रदेश में अवैध घुसपैठ की समस्या की किस कदर बढ़ रही है। वैसे एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश में लगभग 1 करोड़ से अधिक अवैध बांग्लादेशी घुसपैठयों के होने का अंदेशा है। अगर राज्य सरकार के तथ्यों को मानें तो पिछले वर्ष तक 4,44,189 अवैध बाग्लादेशियों के खिलाफ केस दर्ज कर उन्हें विदेशी न्यायधिकरण कोर्ट के समक्ष हाजिर करवाया गया है। जिनमें से अब तक 2,42,261 केसों का निपटारा करते हुये 78,916 लोगों को अवैध बांग्लादेशी के रूप में चिह्नित किया गया था। मगर इन सबके बीच सबसे कमाल की बात यह है कि उपरोक्त चिह्नित किये अवैध बांग्लादेशीयों में से लगभग 38,418 बांग्लादेशी अब लापता हैं और असम पुलिस इन्हें ढूंढने में नाकाम रही है। इन तथ्यों के अलावा भी एक तथ्य और भी है जो चौंकाने वाला है। दरासल विश्व बैंक के एक तथ्य के अनुसार भारत में रह रहे बांग्लादेशी श्रमिकों द्वारा अकेले वर्ष 2012 में ही लगभग 40,000 करोड़ रूपये बांग्लादेश भेजा गया था। जो अपने आप में एक अविश्वसनीय तथ्य है। ऐसे समय में असम के दल-संगठनों द्वारा अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों द्वारा असम के आर्थिक हालात को बिगाड़ने का आरोप किसी भी तरह से अतार्किक नहीं लगता।
उसी तरह भारत सरकार के ग्यारहवीं परिकल्पना के अनुसार भी राज्य के 13 जिलों को मुसलमान संख्यागरिष्ठ जिले के रूप में चिह्नित किया गया है। जिसमें अकेले धूबूरी जिले में ही मुसलमानों की जनसंख्या लगभग 79.69 प्रतिसत दर्ज की गई थी। वहीं बरपेटा जिले में 70.74 प्रतिसत, दरंग जिले में 64.34 प्रतिसत,हाइलाकांदी जिले में 60.31 प्रतिसत, ग्वालपाड़ा जिले में में 57.52 प्रतिसत,करीमगंज जिले में 55.36 प्रतिसत,नगांव जिले में 55.36 प्रतिसत,मरिगांव जिले में 52.56 प्रतिसत और बंगाइगांव जिले में लगभग 50.22 प्रतिसत दर्ज किया गया था। और इस बेतहासा बढ़ते जनसंख्या का मूल कारण अवैध बांग्लादेशियों का प्रवजन ही है। जो बेरोकटोक असम-बाग्लादेश बॉर्डर के रास्ते चल रहा है। और बाग्लादेशियों के बढ़ते इस जनसंख्या का आलम यह है कि इन जिलों में असम के स्थायी निवासीयों को ही अल्पसंख्यक बनकर रहना पड़ रहा है। जिसकी वजह से वे अपने प्राप्य अधिकारों से भी वंचित रहने को वाध्य है। ये अवैध बांग्लादेशियों के बढ़ते जनसंख्या का ही नतीजा है कि इन इलाकों में समय पर समय सांप्रदायिक संघर्ष की छिटपुट घटनाओं की खबरें अक्सर सुनाई देती रहीं हैं। इतना ही नहीं बल्कि बढ़ती जनसंख्या के चलते इन अवैध बांग्लादेशियों का साहस इतना बढ़ गया है कि इनके वकीलों क्रमस: मीर अब्दुर बातेन, सफिकूर इस्लाम,अनवर हुसैन,नूरजमाल इस्लाम,नजरूल इस्लाम तथा शाहजहां अली ने विदेशी न्यायधिकरण के कोर्ट में ही ओन ड्यूटि विदेशी न्यायधिकरण के न्यायाधीश पे ताबड़तोड़ हमला कर दिया था। इस घटना में पीड़ित उक्त न्यायाधीश का कसूर बस इतना सा था कि उन्होंने बांग्लादेशियों की शिनाख्त बिना कोई कोताही बर्ते की तथा सभी अवैध बाग्लादेशियों को गैरकानुनी प्रवजनकारी घोषित करने का साहस दिखाया।
प्रदेश में ये कोई पहली घटना नहीं है बल्कि दिन-प्रतिदिन राज्य के हालात बेकाबू होते जा रहें हैं। एकमात्र इन अवैध बांग्लादेशियों की वजह से ही प्रदेश की कानून व्यवस्था लगातार बिगड़ रही है। राज्य में होने वाली अधिकतर चोरी,डकैती,हत्या,अवैध वस्तुओं के व्यापार जैसे अपराधों में अधिकतर बांग्लादेशियों के ही सामिल होने के सबूत मिले रहें हैं। ऐसे में राज्य की शांति-श्रृंखला बनाये रखने के लिए राज्य व केन्द्र सरकारों को चाहिये कि वे त्वरीत कार्रवाई के जरिये बांग्लादेशीयों को देश की सीमा से बाहर निकालने की व्यवस्था करें। वैसे भी लोकसभा व विधानसभा चुनावों से पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा असम की जनता से किये गये वादों को पूरा करने का सही वक्त अब आ गया है। अब देश के प्रधानमंत्री को बिना सर्त जनता के प्रति अपने दायित्वों का पालन करते हुये अवैध विदेशियों को उनकी सही जगह पहुंचाने का कदम उठाना चाहिये। असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल को भी अपने छात्र आन्दोलन के दिनों को याद करते हुये विदेशी भगाओ आन्दोलन में जान गंवाने वाले शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि देने चेष्टा करनी चाहिये। छात्र संगठन के भूतपूर्व नेता के रूप में सोनोवाल का यह फर्ज बनता है कि वे अवैध बांग्लादेशियों को जल्द से जल्द उनके अंजाम तक पहुंचाने की दिशा में कदम बढ़ायें। भारतीय जनता पार्टी को भी अब अपने आदर्शों और विचारधारा की रक्षा के प्रण के साथ केंद्र व राज्य सरकारों पर तुरंत दबाव डालते हुये मामले के शीघ्र निपटारे की कोशिश करनी चाहिये जिससे कि भाजपा आनेवाले समय में लंबे वक्त तक राज्य की सत्ता में बनी रहे।
केंद्र व राज्य में एनडीए की सहयोगी व विदेशियों के खिलाफ जन आन्दोलन से राजनीति में आई असम गण परिषद को भी अपने सहयोगी सरकार को इस बात के लिए मजबूर करना चाहिये कि वे असम की जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुये बांग्लादेशियों के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई को और अधिक तीव्रतर करे और शीघ्र ही उन्हें देश से बाहर का रास्ता दिखाये। बल्कि मैं कहुं तो ये समय पूरे देश के एकत्रित होने का भी है। और समस्या की गंभीरता को देखते हुये अब पूरे देश को एकसाथ आकर इन अवैध शत्रुओं के खिलाफ एक निर्णायक जंग लड़ने की जरूरत है। ठीक वैसी ही एक जंग जो अखिल असम छात्र परिषद (AASU) पिछले कई दसकों से लड़ते आ रही है। देश की एकता और अखंडता के लिए एक ऐसी जंग जो हमारी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित कर सके। सायद तब कहीं जाकर देश को आर्थिक व सामाजिक तौर पे और अधिक सशक्त बनाने की कल्पना की सकती है। याद रखिये कि देश के सीमा पर खड़े हमारे जवान तभी हमारी रक्षा में सफल हो पायेंगे जब हम सब मिलकर देश के भीतर छुपे दुश्मनों से अपने देश को बचाने की कोशिश करें। और देश के वर्तमान परिदृश्य के हिसाब से ये बांग्लादेशी प्रवजनकारी ही हमारे देश के लिए सबसे बड़ी समस्या हैं।
मुकेश सिंह
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