“कुंडलिया”
ले कागज की नाव को, बचपन हुआ सवार
एक हाथ पानी भरे, एक हाथ पतवार
एक हाथ पतवार, ढुलकती जाए नैया
आँगन हँसत दुवार, छलकती छाए मैया
पहुंच रे गौतम घाट, हाट के नामी भावज
पस्ती के भंडार, बीन ले छिटके कागज।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
ले कागज की नाव को, बचपन हुआ सवार
एक हाथ पानी भरे, एक हाथ पतवार
एक हाथ पतवार, ढुलकती जाए नैया
आँगन हँसत दुवार, छलकती छाए मैया
पहुंच रे गौतम घाट, हाट के नामी भावज
पस्ती के भंडार, बीन ले छिटके कागज।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी