गीत/नवगीत

“नवगीत”

रुक जाओ तुम जहाँ खड़े हो, बढ़ा न देना उठे कदम

नप जाएगी सारी धरती कदम कदम यदि उठे कदम

युद्ध तीसरा कैसा होगा याद करो श्री शिव त्रि नयन

मत दो आमंत्रण बीरों को मत ललकारों उठें कदम…..रुक जाओ तुम जहाँ खड़े हो

कदम उठाया था रावण ने जब अपने ही हठ धर्मी का

याद करो वह कदम कंस का रिश्ता मामा बिधर्मी का

फिर श्री कदम उठा था प्रभु का एक त्रेता एक द्वापर में

यह कलियुग है कदम कलियुगी उठे नहीं सरगर्मी का

मत दो आमंत्रण बीरों को मत ललकारों उठें कदम…..रुक जाओ तुम जहाँ खड़े हो

सबके घर में विष विषाणु तो सबके महला उड़न खटोला

भूल बहुत बड़ी होगी कहना कि अपने आँगन सोन पटोला

कदम पसारे सो जाएंगे अपने बिस्तर लिए गरम बिछौना

बता तनिक अपनी भूमी को युद्धचित्र भरे हैं मरम टटोला

मत दो आमंत्रण बीरों को मत ललकारों उठें कदम…..रुक जाओ तुम जहाँ खड़े हो

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ