लघुकथा

सारा जहां हमारा है

”राम-राम छमिया मौसी.”सुनील ने काठगाड़ी पकड़कर हौले-हौले चलती छमिया मौसी को देखकर कहा.

”आयुष्मान, बुद्धिमान, सेवामान भव बेटा.” छमिया मौसी ने हमेशा की तरह खुश होते हुए आशीर्वाद की झड़ी लगा दी.

”छमिया मौसी, आपके आशीर्वाद से मुझे न जाने कैसी अजीब शक्ति मिल जाती है?” इतने बढ़िया आशीर्वाद, वो भी संस्कृत में, कहां से सीखीं भला?”

”बेटा, बचपन से हम जो देखते-सुनते हैं, वही तो हमारी जमा पूंजी हो जाती है न! हमारे पिताजी हमें इसी तरह से आशीर्वाद देते थे.”

”मौसी, आज हौले-हौले क्यों चल रही हैं?” सुनील बोला. ”आज आपने बाल भी नहीं संवारे!”

”बेटा, आज तनिक बदन गरमा रहा है, हड्डियां भी दुख रही हैं.”

”छमिया मौसी, मेरे साथ चलिए, मेरी मां आपको दवाई भी देगी, चाय भी पिलाएगी और आपके बाल भी संवारेगी.”

”रहने दे बेटा, तूने कह दिया, मुझे सब मिल गया. देखो मेरे शरीर की गर्मी तनिक ठीक भी हो गई.”

”चलो न मौसी!” सुनील ने अपनेपन से एक हाथ से उनकी काठगाड़ी पकड़ ली, दूसरे हाथ से छमिया मौसी को थामकर घर ले गया.

थोड़ी देर में छमिया मौसी सुनील के घर से निकलीं, तो उनको पहचानना ही मुश्किल था. सुनील की डॉक्टर मां ने उन्हें नहला-धुलाकर खिलाया-पिलाया, दवाई दी और बाल भी संवार दिए थे. ”अब कहां जाएंगी मौसी जी?” सुनील की मां ने पूछ ही तो लिया.

”बस ज़रा पुलिस चौकी तक.”

”मौसी, पुलिस चौकी से ज़रा बचकर रहा करिए. पुलिस आपके इस मैले-कुचैले झोले की भी तलाशी ले लेगी.”

”बेटी, इन्हीं पुलिस वालों की मेहरबानी से तो हम सब चैन से रहते-सोते हैं.”

”बात तो ठीक ही कह रही हैं मौसी जी.” डॉक्टर साहिबा ने छमिया मौसी की बात से सहमति जताते हुए कहा.

”अच्छा, तनिक जल्दी चलूं, वे मेरी राह देख रहे होंगे, जब तक मैं नहीं जाऊंगी, वे चाय नहीं पिएंगे. उनके निश्छल प्रेम को देख लगता है, सारा जहां हमारा है.”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244