गुरु महिमा
१-
फैला था चारो तरफ ,तम रूपी अज्ञान ।
गुरुरूपी दीपक जला ,हुआ दीप्ति का भान ।।
२-
हम माटी के लोथड़े,गुरु है कुशल कुम्हार ।
चढ़ा ज्ञान के चाक पर,दिया सुघर आकार ।।
३-
जीवन कच्चे सार की,एक कुंद तलवार ।
गुरू ज्ञान उस पर चढ़े,बनकर तीखी धार ।।
४-
कहाँ ज्ञान बिन मुक्ति है, कहाँ गुरू बिन ज्ञान ?
बिना गुरू के ज्ञान के,जीवन पशू समान ।।
५-
जिसने दिखलाए हमें नित्य नये आयाम ।
ऐसे गुरु भगवान को बारम्बार प्रणाम ।।
©डा. दिवाकर द