कविता

समाज ने छला राम को

मर्यादा के खातिर जिसने अपना घर कुर्बान किया
राज्य हित के खातिर जिसने पति धर्म को त्याग दिया
जो सीता माता प्राणों से ज्यादा प्यारी थी श्री राम को
जिनके खातिर तोड़ दिया था त्रिपुरारी के चाप् को
उनको उनको उनको इक धोबी के दुश्‍हास का पात्र बनाया जाता है
जो गंगा माँ से ज्यादा पावन थी अग्नि के भेंट चढ़ाया जाता है
जो गंगा माँ से ज्यादा पावन थी….
पहली बार वैदेही ने जब जन्‍म लिया था माँ की कोख से
दूसरी बार जना मही ने अपने माटी के ग्रीस्‍म से
तीसरी बार जनक ने जन्मा जानकी के नाम से
चौथी बार जन्मी सीता सुनैना के विश्वास से
पांचवी बार तब जन्मी थीं जब श्री राम को देखा था
छठी बार तब जन्मी जब वरमाला को सौंपा था
सातवी बार जब बाबुल के घर से पिया का दामन थामा था
आठवी बार तब जनम लिया जब दसरथ के चेहरे में पिता दिखा
नौवी बार तब जनम लिया जब कौशल्या ने बेटी कह पुकारा था
दसवी बार जन्‍म लिया जब तीनों सासु ने मिल पुचकारा था
पहली बार मरी थीं सीता जब अपनो ने जहर घोला था
जिसके कारण पिता ने अपने पुत्र का वियोग स्वीकारा था
दूसरी मौत मरी थीं सीता जब राजा दसरथ का देहांत हुआ
पुत्र से मिलने पिता की आत्मा पिंजरे से आजाद हुआ
तीसरी मौत वैदेही की थी जब रावण ने विश्वास घात किया
द्विज के रूप में छला अबला को ये कैसा वीर परायण था
चौथी मौत मरी जानकी जब लक्ष्मण की मृत्यु का संदेश सुना
इन सब मौत से मरी नहीं थीं, अभी भी जान बाकी थी
श्री राम के चरणों में सच पूछो तो अब भी प्रीत बाकी थी
सच पूछो तो उस दिन सीता का आधा जान निकल गया
जब श्री राम के मुख से उन्होने अग्नि परीक्षा की बात सुना
तब भी परीक्षा दिया खुशी से किया पति का कहना मान
पर तब भी कैसे जी गयीं सीता जब निकाल दिया घर से
केवल बात धोबी की मान
तब जाकर सहाय हुई मही और फाड़ लिया अपना आंचल
आ पुत्री अब चल यहाँ से
यहाँ नहीं कोई निश्चल
आ पुत्री अब चल यहाँ से
यहाँ नहीं कोई निश्चल।

✍️✍️आर्यन उपाध्याय ऐरावत ✍️✍️

 

आर्यन उपाध्याय ऐरावत

मेरा नाम आर्यन उपाध्याय है. मैं अभी एम. एस. सी कर रहा हूं. लेखन का शौक मुझे बचपन से है. मैं गाने भी लिखता हूँ और कविता लेखन का भी मुझे शौक है. मैं वाराणसी का रहने वाला हूँ.