कहानी : मोह के धागे
एक अजीब सा अहसास लिए जीती हूँ,
ज़िंदगी में दिल और दिमाग की भूमिका में
कुछ उलझे-सुलझे रिश्तो के धागे में लिपटी हूँ…!!
नंदी की कुछ यादें आज भी साथ है , जो वक़्त से गुजर गहरे परतो में छुप तो गयी लेकिन प्रेमकहानी के नाम कुछ पल जी पायी और समझ पायी कि उसे प्यार हुआ, वो अहसास सच या ख्वाब बस उलझी सी रही…। बालकनी से उसने एक प्रेमी युगल को जाते देखा, जो सड़क से गुज़र रहे थे और दिन -दुनियां से अलग आपस में मीठे तक़रार करते हुए नंदी के आंखों के सामने से गुज़र गए । दिल में टिस उठी थी नंदी के.. कि वो रूद्र की दोस्त थी या प्रेमिका।
रूद्र और नंदी एक ही कॉलेज में पढ़ते थे और उनकी कॉलोनी भी एक, रूद्र का घर नंदी के घर से एक दो घर छोड़ के, अधिकतर उनका और उनके परिवारों का मिलना- जुलना हो जाया करता था। नंदी बहुत सरल और सादे दिल की लड़की वो मन में छलकपट या कोई दोमुखी बात न करती और न कहती , जो जैसा उसके साथ वो वैसी ही थी । रूद्र से उसकी अच्छी दोस्ती थी , रूद्र दोस्त अच्छा था, वो नंदी का ख्याल रखता और उसके बातों पे अक्सर उससे नोंकझोंक करता और अपनी बात मनवा का दम लेता था। नंदी दोस्ती के नाते ही सही वो रूद्र से बिन बहस एकदम खामोशी से उसकी बात मान लेती थी। धीरे-धीरे नंदी को अपने मन में रूद्र को लेकर एक खिंचाव का अहसास हुआ , जब रूद्र नंदी के साथ होता तो वो बहुत खुश और सुकून सा मह्सूस करती और रूद्र के जाने के बाद उसके साथ होने का फिर इंतज़ार, नंदी बहुत संकोच में थी वो रूद्र को लेकर क्यों ये बदलाव पा रही, कॉलेज में रूद्र किसी और के साथ हो तब तो नंदी बेचैन सा हो जाती थी और रूद्र वापस आये यही सोच उसे खामोशी से बुलाती थी। रूद्र बहुत अच्छा लड़का और साथ ही वो दिल से कम और दिमाग को जीता था..उसके विचार नंदी से बहुत अलग थे लेकिन फिर भी वो अपना अधिक समय नंदी के साथ ही गुज़ारता था। एक दिन नंदी ने अपने दिल के सारे अहसास को रूद्र का सामने का कह दिया, और सही मायने में रूद्र ने उसको सुना भी लेकिन फिर उसके बाद जो रूद्र ने कहा – “वो सिर्फ इतना की नंदी तुम बहुत अच्छी हो और बहुत अच्छी दोस्त भी, तुम्हारे साथ रहना पसंद, लेकिन सुनो, मुझे तुमसे प्यार नहीं, और तुम्हारी ये बातें सुनकर ही कह रहा कि तुम्हें भी मुझसे प्यार नहीं हाँ- ये एक दोस्त के रूप में तुम्हारी नई सोच सामने आयी और कह के हंसने लगा। नंदी खामोश थी क्योंकि जो उसने अहसास किया, रूद्र से कहा और उसे रुद्र कही नहीं मिला। ज़बरदस्ती का अहसास वो रूद्र को कराना सही नहीं समझा और उसने उसी समय रूद्र के हंसी में अपना दर्द छुपाकर उसके बात पे मुस्कुराकर के अपने बातों को दूसरे अंदाज में एकतरफा सोच समझ रुख मोड़ दिया।
फिर एक दिन नंदी की शादी करीब और रूद्र के इज़हार का दिन आया, जहाँ रूद्र ने नंदी को अपने दिल का हाल बयां किया, जब उसने बताया कि “नंदी तुम्हारी शादी का सुन मुझे अच्छा नहीं लग रहा, तुमसे दूर जाने का अहसास मुझे डरा रहा और ऐसा लग रहा कि उस वक़्त जो तुमने मुझे कहा वहां मैंने बिना सोचे-समझे, पूरी बात को तर्क-वितर्क कर दिमाग लगाया और दिल की नहीं सुनी।”
नंदी फिर से एक बार खामोश रह के सुनी, जहां दिल से उलझी तो रूद्र मिला जिसे वो प्यार करती थी, और जब दिमाग से सोचा तो वो लड़का दिखा जिसे उसके माँ-पापा ने चुनने से पहले उसकी पसंद और नापसंद पूछ कर ही उसकी शादी तय की, और वो अब पीछे नहीं जा सकती थी। फिर नंदी ने जो रुद्र को कहा, “गर दिल से कहूं तो रूद्र ये बिलकुल सच मेरे दिल में तुम हो, वो जिसे प्रेम किया, ये बात अलग पाने की चाहत भी की लेकिन तुम नहीं मिले वहां, जहाँ तुम चाहिए थे, लेकिन आज मुझे ये सुनकर अच्छा लग रहा कि मेरे प्यार के अहसास का वजूद था, उसमे आज तुम भी हो, भले तुमने देर से दिल की सुनी लेकिन तुम्हारे दिल में पहला नाम नंदी है।
बिना दिमाग लगाए आज दिल से तुमने मुझे प्यार का नाम दिया और यक़ी करो मेरा, मुझे ये प्यार के कुछ लम्हें तुमने सही मायनें में किसी और संग जुड़ने से पहले दे दिया। अपना ये अहसास दर्द के साथ एक मीठे यादगार लम्हों को जियूँगी, रूद्र में तुम्हें कभी न भूलूंगी, दिल में याद और दिमाग से अपनी दोस्ती को नया जीवन दूंगी।
हमारी प्रेमकहानी अधूरी ही सही लेकिन यादों में साथ रखना हमदोनों के प्यार को वज़ूद मिला और यही पल हमदोनों ने साथ जिया, नंदीके आंखों में आसूं था।
रूद्र आज नंदी के दिल और दिमाग दोनों से मिला, जहाँ उसने सब खो दिया था और जो मिला वो प्यार दिल से होता, दिमाग फितूर है ज़िंदगी और प्यार को जुदा करके सिर्फ उलझने और जुदाई मिलती। रूद्र खुश था उसे नंदी से प्यार हुआ जितना खूबसूरत दिल उससे कही अधिक उसने दिमाग के जरिए अपने दोस्ती को नया जीवन।
!!इति!!
#नंदिता@