राष्ट्र सेना बनाओ
मै मुंबई से बनारस आ रहा था , मेरे बगल वाले सीट पर एक नौजवान बैठा था जो अपने को इंजिनियर बता रहा था / मै अखंड ज्योति पढ़ रहा था , अचानक वह पूछ बैठा की आप बाबा साहब के विचारों को नहीं पढ़ते ? मैंने कहा की नहीं ! क्योकि बाबा साहब पढने से ज्यादा इस्तेमाल की चीज हो गए है जिसका कांग्रेस ने ६० साल तक भरपूर फायदा उठाया और अब दुसरे उठाने की कोशिश कर रहे है / न तो कांग्रेस और न ही अब के अम्बेडकर वादी , बाबा साहब को राष्ट्रिय चिन्तक नहीं बनने दे रहे है , उनको एक ऐसे खांचे में बाँध दिए है की वे एक जाती विशेष के नेता बनकर रह गए है / बाबा साहब चाहते कुछ और थे और उनके नाम पर हो कुछ और रहा है / एक कहावत है की अगर आदमी १०० काम सही करता है तो एकाक गलती स्वाभाविक रूप से हो जाती है और उसी एक गलती को कांग्रेस ने बहुत कास कर पकड़ लिया और अब अम्बेडकरवादी पकड़ रहे है / अब इसे बाबा साहब की निश्चलता कहे या कोई राजनैतिक लिप्सा की वे सारे दबे कुचले लोगो , सारे शोषित लोगो के लिए आवाज न उठाकर एक जाती विशेष के लिए उठाए / जो उनके नियत पर ही संदेह का कारन बन रहा है / सवाल पैदा होता है की क्या उनकी मंशा सचमुच में दबे कुचले शोषितों के उत्थान की थी या एक वोटबैंक तैयार करने की जो भविष्य में उन्हें राजनैतिक फायदा पहुचाता / बाबा साहब कोई साधारण आदमी नहीं थे , वे चिन्तक विचारक और कुशल राजनीतिग्य थे , साथ साथ उन्हें भारत के जातीय समाज का पूर्ण ज्ञान था / वे अच्छी तरह जानते थे की तमाम जातियों में बिखरे हुए शोषित , उत्पीडित उसी प्रकार वोटबैंक नहीं बन सकते जिस प्रकार तमाम जातियों में बिखरे हुए खेती करनेवाले किसान या ब्यापार करने वाले ब्यापारी /!जैसा की आंबेडकर को संविधान का निर्माता कहा जाता है ! जिस आंबेडकर को राष्ट्रिय एकता , सामाजिक एकता तथा शोषितों वंचितों को कौशल उद्यम परिश्रम का पाठ पढ़ा कर उन्हें स्वावलंबी बनाने का उद्यम करना चाहिए था उन्हें वे आरक्षण का हथियार थमा दिए जो प्रतिदिन जातीय सामाजिक बिद्वेष पैदा कर रहा है /अज के आंबेडकर वादी उसी हथियार को बन्दर के मुट्ठी की तरह पकड़कर विवेकानंद बनने की कोशिश कर रहे है और विबंदना है की जिनमे विवेकानंद बनने की योग्यता है उसके राह में तमाम रोड़ा अटका रहे है / हद तो तब हो जाती है जब जाती विद्वेष में अंधे होकर ए आंबेडकर वादी अलगाव वादी शक्तियों या उन राजनैतिक दलो का साथ देने लगते है जो इन्हें दलित होने से ऊपर नहीं उठने देना चाहते है / आखिर ७० साल बीत जाने के बाद भी चुनाव के दौरान जातियों को क्यों साधा जाता है ? विद्वेष पैदा करके बदला लेने की रणनित कहा तक सफल हो पाई है ? वोट शक्ति का इस्तेमाल हम राष्ट्रिय परिप्रेक्ष्य में कब करेंगे ? भीम सेना या रणबीर सेना समस्या का हल नहीं है / बनाना ही है तो राष्ट्र सेना बनाओ !