सावन आया
रसमय स्नेह-सुधा बरसाने, सावन आया।
रक्षाबंधन पर्व मनाने, सावन आया।
पीहर से पिय घर तक स्नेहिल-सेतु बनाकर
बहनों का सम्मान बढ़ाने, सावन आया।
बोल रही रस घोल कान में, हवा बहन के
चलो मायके रंग जमाने, सावन आया।
अहं-तिमिर से आब खो चुके बुझे दिलों में
पावनता की ज्योत जगाने, सावन आया।
झूम रहा हर पेड़, देख पाँतें झूलों की
डाल-डाल पर पींग बढ़ाने, सावन आया।
मचल रही पग, हाथ रचाने हिना, बहन के
पायल-धुन पर गीत सुनाने, सावन आया।
राखी बँधी कलाई-कर से हम बहनों को
नेह-नेग अधिकार दिलाने, सावन आया।
टूट रहे जो आज ‘कल्पना’ पावन रिश्ते
उनमें फिर से गाँठ लगाने, सावन आया।
-कल्पना रामानी