गीतिका/ग़ज़ल

“गज़ल”

खड़ा गुलमुहर की छाया नहीं था

अभी सावन वहाँ आया नहीं था

हवा पूर्बी सरसराने लगी थी

मगर ऋतु बर्खा ने गाया नहीं था॥

गली में शोर था झूला पड़ा हैं

किसी ने मगर झुलवाया नहीं था॥

घिरी वो बदरिया लागे सुहानी

झुके थे नैन भर्भराया नहीं था॥

सखी की टोलकी बहुते सयानी

नचाया तो पर सिखाया नहीं था॥

कभी आके निहारे दिल पुकारे

पियासे होठ छू पाया नहीं था॥

उसे ही गौतम रिझाता रहा है

जिसे पलकों पर बिठाया नहीं था॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ