“मुक्तक”
बागवाँ बाग से चाहता वानगी
हो गहन ताप या हो विपिन ताजगी
दूर तक चाँदनी छा चले राह में
हो चलन कारवाँ या चलन ख़ानगी॥-1
जंगलों की विटप डालियाँ झूमती
फूल कलियाँ खिलें कोयली कूंकती
पर भरोषा कहाँ बीहड़ों ने दिया
आग जलती रही वन विपिन फूँकती॥-2
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी