कविता

ऐ ज़िन्दगी

हर किसी को
अपने हिस्से की जंग
ख़ुद लड़नी पड़ती है
ख़ुद को ख़ुद का उजाला
और ख़ुद की किरण
बननी पड़ती है !
जीवन में अंधियारे के हैं
अनगिनत पड़ाव
बाधाएं पार
करनी होती हैं
मायूसी/ हताशा / लाचारी
से हारे
तो दिल सिसकता है
आँखें रोती हैं !
जीवन की हक़ीक़त
बहुत कड़वी
होती है
है सच्चाई यही कि
खुशी तो ख़ुद चुपके -चुपके
ग़म के बीज
बोती है !
प्रो.शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]