ऐ ज़िन्दगी
हर किसी को
अपने हिस्से की जंग
ख़ुद लड़नी पड़ती है
ख़ुद को ख़ुद का उजाला
और ख़ुद की किरण
बननी पड़ती है !
जीवन में अंधियारे के हैं
अनगिनत पड़ाव
बाधाएं पार
करनी होती हैं
मायूसी/ हताशा / लाचारी
से हारे
तो दिल सिसकता है
आँखें रोती हैं !
जीवन की हक़ीक़त
बहुत कड़वी
होती है
है सच्चाई यही कि
खुशी तो ख़ुद चुपके -चुपके
ग़म के बीज
बोती है !
— प्रो.शरद नारायण खरे