ग़ज़ल
पलक बंद कर लूं, आंखों में बसा लूं
आ पास मेरे बैठ, तुझे अपना बना लूं
हर तरफ तेरा चेहरा, दिखता है अब मुझे
जहां तक मैं देखता हूं, जहां भी नजर डालूँ
कुछ गलतियां तुम मेरी, आज छुपा लो
नादानियां कुछ अपनी, मैं आज छुपा लूं
मुहब्बत हुई है तुमसे, बेइंतहा मुझे
जी चाहता है तुमको, इबादत मैं बना लूं
वजूद मेरा मिटकर तेरा वजूद हो जाए
फासले मिटाकर तुझमें मैं आज समा लूं
— राजेश सिंह