कविता

“मैं सोचता हूं…“

आज लिखने जैसा कुछ भी नहीं पर सोच है कि रुकती नहीं मैं सोचता हूं… लाचार, बीमार- शब्द उभरता है जनता मूर्ख, अधीर, बेकार — शब्द उभरता है जनता मैं सोचता हूं… अवसर, चालाक — शब्द उभरता है धंधा मैं सोचता हूं…. होशियार, समझदार, व्यापार शब्द उभरता है सरकार

गीत/नवगीत

मेरे हमसफ़र आओ आ भी जाओ

सूनी आखों में इक आस अभी बाकी है दूर देखता हूं तो  उजास अभी बाकी है तेरी यादों का सहारा बचा है जीने को ग़म सारे पी चुका जहर बचा है पीने को चैन से मौत आ जाए मगर उससे पहले मेरे हमसफ़र आओ ,आ भी जाओ सुनहले ख्वाबों की नींद अभी बाकी है सूरज […]

कविता

“तुमको सोचूं तो”

तुमको सोचूं तो जैसे प्यासे को पानी कृष्ण की मीरा दीवानी जेठ की दुपहरी में पीपल की छाव हरी भरी लहलहाती फसल खेलता कूदता बचपन का गांव तुमको सोचूं तो जैसे राही की मंजिल खूबसूरती बढ़ाने वाला तिल दौड़ती भागती जिंदगी का ठहराव अल्हड़ मदमस्त जवानी जीवन हंसते खेलते जीने का चाव तुमको सोचूं तो […]

कविता

“रौशनी की तलाश जारी है”

कितनी बार डगमगाई कश्ती , कितनी बार संभाला है तूने भंवर में जब भी फंसी नाव मेरी हर बार आकर निकाला है तूने तुझसे मिलने कोई जुगत लगाऊं कैसे तुझको जानू और तुझको पाऊं कैसे तेरे बारे में मेरा कयास जारी है तू अगर है रौशनी की मानिंद तो, रौशनी की तलाश जारी है.

कविता

“तुमको सोचू”

तुमको सोचू तो जैसे प्यासे को पानी कृष्ण की मीरा दीवानी जेठ की दुपहरी में पीपल की छाव हरी भरी लहलहाती फसल खेलता कूदता बचपन का गांव तुमको सोचू तो जैसे राही की मंजिल खूबसूरती बढ़ाने वाला तिल दौड़ती भागती जिंदगी का ठहराव अल्हड़ मदमस्त जवानी जीवन हंसते खेलते जीने का चाव

मुक्तक/दोहा

मुक्तक

मेरा खत उस तक कोई पहुंचाएं तो सही मेरे गीत गाकर कोई उसको सुनाएं तो सही दरिया इस पार रहता है उसका इक दीवाना दरिया उस पार कोई उसको बताएं तो सही

मुक्तक/दोहा

मुक्तक

दिल की बातें जुबां पर कभी लाई नहीं जाती चेहरे की रंगत भी मगर उनसे छुपाई नहीं जाती समझने वाले तो समझ ही जाते है राज-ए-दिल हर बात काग़ज़ कलम से समझायी नहीं जाती

कविता

“फलसफा जिन्दगी का “

फलसफा जिन्दगी से यही हमने सीखा नहीं कोई होता फलसफा जिन्दगी का भूख लगे तब खाना नींद लगे तब सोना मन मगन तब हंसना दर्द मिले पर रोना न दिल को जलाना न ही मन को सताना न सोच सोच बेकार अपना भेजा जलाना जहां पर जैसा मिले वहां वैसा ही चुनना मिट्टी की इस […]

गीतिका/ग़ज़ल

“संभलते कैसे”

अदाओं से तेरी संभलते तो संभलते कैसे निगाहों से तेरी बचके निकलते तो निकलते कैसे, चांद गायब था शब भर तुम भी न आए छत पर फलक पर सितारे चमकते तो चमकते कैसे, डालियों को सीखना है तुमसे मोहब्बत की अदा फूलों से लदकर लचकते तो लचकते कैसे, तुम्हारे आने से आ जाती है फूलों […]

गीतिका/ग़ज़ल

“तुम याद आए”

हुई बरसात तो तुम याद आए उमड़े जज्बात तो तुम याद आए, हिचकियां हिचकियों पर आती रही किसने किया याद तो तुम याद आए, रात महफिल थी सब नशे में थे छिड़ी जब बात तो तुम याद आए, तन्हा छोड़ा मुझे सब घर को गए हुई जब रात तो तुम याद आए, फूल ही फूल […]