निंदा नहीं बदला चाहिए
ए साहिब! हमें कड़ी निंदा नहीं बदला चाहिए है,
उनमें भी दहशत का एक जलजला चाहिए है।
बहुत हुआ कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं,
रूह भी काँप उठे उनकी ऐसा हमला चाहिए है।
कब उनकी हज यात्रा में हमने रोड़ा अटकाया है,
कब उनकी तरह इंसानियत का खून बहाया है।
रोजों में अपने हिस्से की बिजली देते हैं हम तो,
मानकर भाई उनको ईद पर हमने गले लगाया है।
पर हमारी खामोशी को वो कायरता मान बैठे हैं,
हमारी अमन परस्ती को वो कमजोरी जान बैठे हैं।
पर अब वक़्त आ गया है उनको सबक सिखाने का,
देख लचीलापन वो हमारी कट्टरता से अनजान बैठे हैं।
ए साहिब! मत सोचो दे दो छूट हाथ सेना को एक बार,
हर रोज का खत्म हो ये झगड़ा, सबकी यही है पुकार।
खून खौल रहा है सुलक्षणा का, फड़क रही है कलम,
खाक ए मिट्टी कर दूँ उनको, छीन उनके ही हथियार।
©® डॉ सुलक्षणा